मीराबाई का जीवन परिचय| Meerabai in Hindi
भक्तिकाल की एक ऐसी संत जो अपने प्रभु को ही सबकुछ मानकर उसमें ही लीन हो गईं। meerabai ka jeevan parichay किसी से छिपा नहीं है, ये बात हर कोई जानता है कि वे श्रीकृष्ण की कितनी बड़ी भक्त थीं जिन्हें मन ही मन वे अपना पति भी मान चुकी थीं। मगर कोई ये नहीं जानता कि इस प्रेम में उन्हें भी कितनी परिक्षाएं देनी पड़ी थीं और एक दिन उन्हें अपनी इस निस्वार्थ भक्ति का फल प्रभु दर्शन को प्राप्त करके दुनिया से दूर हो गईं। उनकी भक्ति और प्रेम इतना निश्छल था कि इससे दूसरों को बहुत आपत्तियां होने लगी थीं।
Meerabai 15वीं शताब्दी की ऐसी संत थीं जिन्होंने बचपन में कृष्ण जी को अपना सबकुछ मान लिया और इसके चलते उन्हें लोगों की बुरी-बुरी बातें भी सहनी पड़ी थीं। उन्हें अपने जीवन में क्या-क्या सहना पड़ा था, इसके बारे में आप इस लेख में जानेंगे..
1. मीराबाई का जन्म 1504 ई. में राजस्थान के मेड़ता जिले के चौकरी गांव में हुआ था। इनके पिता रतन सिंह जोधपुर के संस्थापक राव जोधा जी राठौड़ वंशज राव दुदा के पुत्र रहे हैं।
2. मीराबाई का पालन-पोषण उनके दादजी ने किया था और शाही परिवार से होने के नाते इन्हें शिक्षा में शास्त्रों का ज्ञान, संगीत, तीरंदाजी, तलवारबाजी, घुड़सवारी और रथ चलाने की कला सिखाई गई थी।
3. उन्हें युद्ध की आपदा आने पर शस्त्र चलाने का अभ्यास था हालांकि इन सबके साथ ही उनका बचपन कृष्ण भक्ति में बदल गया। 4 साल की उम्र मे ही उन्हें कृष्ण भक्ति की लगन लग गई थी।
4. मीराबाई ने एक बार अपने घर के बाहर विवाह समारोह देखा और उसमें सुंदर वेश में दुल्हा देखा तो अपनी मां से पूछ बैठी कि उनका दूल्हा कौन है ? मीराबाई की मां ने उन्हें श्रीकृष्ण की प्रतिमा को दिखाते हुए कहा ये हैं तुम्हारे दुल्हा। बस तभी से मीराबाई ने श्रीकृष्ण को अपना सबकुछ मान लिया था।
5. मीरा जैसे-जैसे बड़ी होती गईं उनका प्रेम श्रीकृष्ण के लिए गहरा होता गया और उन्हें ऐसा लगता था कि श्रीकृष्ण उनसे विवाह करेंगे इसलिए मन ही मन उन्हें अपना पति भी मान चुकी थीं।
6. मीराबाई की सुंदरता और गुणों से प्रसन्न होर राणा सांगा अपने पुत्र भोजराज का विवाह उनसे कराना चाहते थे। राव दादु ने जब मीराबाई को बताया तो वे तैयार नहीं हुई और उन्होंने बताया कि वे श्रीकृष्ण को अपना पति मान चुकी हैं। मगर दादाजी का हुकूम वो टाल नहीं पाई और विरोध करने पर भी उन्हें भोजराज के साथ विवाह करना पड़ा था।
7. साल 1513 में माराबाई का 14 वर्ष की आयु में विवाह हो गया था और वो राणा कुम्भा के साथ चित्तौड़गढ चली गईं। अपने घर के कामकाज निपटाने के बाद मीरा बाई हर दिन कृष्ण मंदिर चली जाती थीं जहां वे नाचती और गाती थीं।
8. राणा कुंभा की मां को उनका ये व्यवहार अच्छा नहीं लगा और मीरा बाई की सास ने उन्हें दुर्गा जी की पूजा करने के लिए बाध्य कर दिया। मगर मीरा ने मना करते हुए कहा, ''मैंने अपना जीवन पहले ही कृष्ण को समर्पित कर दिया है।''
9. मीराबाई की ननद ने उन्हें बदनाम करने की योजना बना और राणा कुम्भा को बताया कि मीरा हर दिन अपने गुप्त प्रेमी से मिलने मंदिर के बहाने जाती है।
उसने मीरा को कई बार मंदिर के पास वाले रास्ते में जाते देखा है। इस बात को सुनते ही महल की महिलाएं आपस में बातें करने लगी और मीरा राणा खानदान के लिए कलंक साबित हुई जबकि सच्चाई किसी को नहीं पता थी।
10. औरतों की बातों से राणा कुम्भा को गुस्सा आया और वे हाथों में तलवार लिए मीरा के पास पुहंच गए लेकिन संयोगवश मीरा उस समय मंदिर गई थीं। एक शांत रिश्तेदार ने कुम्भा को सलाह दी कि, ''राणा, तुम अपने जल्दीबाजी के निर्ण के लिए पछताओगे, पहले आरोपों की जांच करो और तुम्हे सच पता चलेगा।''
इसके आगे कहा, ''मीरा भगवान की भक्ति में लीन है और तुमने अपने बेटे के लिए इन सबको छोड़कर मीरा को चुना तो ईर्ष्या के कारण ये तुम्हे भड़का रही हैं। जिससे तुम उसे खत्म कर दो, समझदारी के साथ फैसला लो।''
11. राणा शांत हुए और अपनी बहन के साथ आधी रात को उस मंदिर गए और राणा ने जैसे ही दरवाजा खोला तो देखा कि मीरा मूर्ति से बात करते हुए गाना गा रही हैं।
12. राणा ने चिल्लाते हुए कहा, ''मीरा अपने प्रेमी को मुझे दिखाओ जिसेस तुम बात कर रही हो।'' मीरा ने जवाब दिया, ''वो सामने मेरे भगवान बैठे हैं जिन्होने मेरा दिल बचपन में चुरा लिया था और यही मेरे प्रेमी हैं।'' राणा ने कृष्ण के प्रति मीरा के प्रेम को समझा।
13. वहां रहने वाली सभी औरतों में मीराबाई को लेकर और भी ईर्ष्या भर गई और वे निरंतर मीरा को मारने का षड़यंत्र रचतीं लेकिन असफल हो जाती थीं।
14. मीरा को अक दिन उन्होंने एक फूलों की टोकरी भेजी जिसमें नीचे सांप था। मीरा ने ध्या न करने के बाद टोकरी को खोला तो उसमें माला पहने हुए श्रीकृष्ण की मूर्ति निकली।
15.मीरा के देवर ने अमृत का प्याला बोलकर जहर का प्याला भेज दिया था फिर मीरा ने उसको भगवान कृष्ण को चढ़ाया और उसे प्रसाद के रूप में पी लिया लेकिन वो अमृत ही बन गया।
16. मीरा के जीवन में नया मोड़ आया जब मीराबाई के भजन सुनने के लिए अकबर और तानसेन आए। अकबर को मीरा का भजन इतना पसंद आया कि उसने अपनी मोतियों की माला मीरा को दे दी। इसके बाद राणा कुम्भा ने मीरा को अपने घर से निकाल दिया क्योंकि पराए मर्द ने उन्हें कुछ दे दिया था।
17. राणा ने मीरा को नदी में डूब मरो के लिए कहा था और मीरा ने ऐसा ही करना चाहा। जब वे नदी में छलांग लगाने के लिए आगे बढ़ीं तो एक हाथ ने उन्हें पीछे खींच लिया, जब मीरा मुड़कर देखीं तो गिरधारी श्रीकृष्ण खड़े थे। उस समय मीरा बेहोश हो गईँ और जब होश आया तो सामने कृष्णजी मुस्कुराते हुए खड़े थे।
18. कृष्ण जी ने मीराबाई से कहा, ''मेरी प्रिय मीरा, तुम्हारा जीवन तुम्हारे नश्वर रिश्तेदारों ने खत्म कर दिया है तो अब तुम स्वतंत्र हो, आनंद मनाओ तुम हमेशा मेरी रहोगी।''
19. मीराबाई का जीवन धन्य हो गया और वे नंगे पैर ही वृंदावन की ओर चल पड़ीं। वहां पर इन्होंने दिन-रात श्रीकृष्ण की भक्ति की और भजन कीर्तन करने लगी।
20. इसी पूजा-पाठ में मीराबाई द्वारका पहुंच गईं और यहां नाचते हुए गिरधारी के चरणों में गिरी और कहा, ''हे गिरधारी क्या तुम मुझे बुला रहे हो? मैं आ रही हूं।'' वहां एक बिजली चमकी और मंदिर के दरवाजे अपने आप बंद हो गए और जब दरवाजा खुला तो कृष्ण जी की मूर्ति में मीरा की साड़ी लिपटी हुई थी और केवल बांसुरी की आवाजें आ रही थीं।
21. ऐसा बताया जाता है कि कृष्ण भक्त मीराबाई की मौत आज भी एक रहस्य है। उनके जीवन पूरा होने का कोई प्रमाण नहीं मिला लेकिन इसके बारे में डॉ. शेखावत का कहना है कि मीराबाई की मृत्यु 1548 में हुई थी।