देश में बेटियों को दबाकर आज भी रखा जाता है और जो लड़कियां आगे बढ़ने के बारे में सोचती हैं तो उन्हें लोद अलग रूप से देखते हैं। अगर बेटे कुछ अच्छा करते हैं तो बेटियां भी उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलती हैं। मगर मुस्लिम लड़कियों की दशा आज भी वैसी ही है बहुत सी लड़कियों को 15 साल क्रॉस करते ही शादी करवा दी जाती है। मगर यहां हम एक ऐसी मुस्लिम लड़की के बारे में बताने जा रहे हैं जम्मू-कश्मीर की रहने वाली रुवैदा सलाम ने कश्मीर के नाम एक इतिहास लिख दिया है, जिसने एक या दो नहीं बल्कि तीन जगहों पर सफलता हासिल की है।
डॉक्टर बनते-बनते बन गईं सिविल ऑफिसर
कश्मीर की रहने वाली रुवैदा सलाम ने इन्होंने पहली बार में एमबीबीएस एंट्रैंस क्लिय कर लिया, फिर आईपीएस की परीक्षा और अब आईपीएस की परीक्षा भी पहली ही बार में पास कर ली है। जम्मू के कुपवाड़ा की रहने वाली रुवैदा ने सबसे पले एमबीबीएस फिर आईपीएस और इसके बाद यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है। रुवैदा बताती हैं कि उनकी ऊंचाईयों को छूने के पीछे उनके माता-पिता का हाथ है और उनके पिता ने हमेशा उन्हें प्रोत्साहित किया कभी ऐहसास नहीं होने दिया कि वे एक लड़की हैं और वे पुरुषों से पीछे हैं। रुवैदा के पिता सलामुद्दीन बजद दूरदर्शन के उप निदेशक के पद से सेवानिर्वत्त हुए हैं और कुपवाड़ा से श्रीनगर शहर वहां की आतंकवादी गतिविधियों से बचने आए थे और उन्हें अपनी बेटी पर गर्व है।
27 साल की जुवैदा सलाम को ये कामयाबी दिन रात की मेहनत और बहुत सी मुश्किलों से गुजरकर मिली है। जब उन्होंने पहले एमबीबीएस की परीक्षा पास की तो घरवालों ने उनके ऊपर शादी का दबाव डालना शुरु कर दिया और रुवैदा एक आम लड़की की तरह नहीं बल्कि एक कामयाब महिला की तरह जीवन बीताना चाहती थीं। रुवैदा कहती हैं कि वे शादी करें ना करें लेकिन जीवन में उन्हें बहुत ऊंचाईयों पर जाना है। आपको बता दें कि इस साल 998 सफल उम्मीदवारों मे रुवैदा सलाम ने 820वीं रैंक हासिल की है और वे ऐसी पहली भारतीय मुस्लिम लड़की हैं जिन्होंने भारतीय सिविल सेवा परिक्षा पास किया है।
10 साल से कर रही थीं सफलता का इंतजार
रुवैदा ने साल 2009 में ही मेडिकल की पढ़ाई करना शुरु कर दिया था। इन्होंने श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज से अपनी डिग्री प्राप्त की। इसके बाद श्रीनगर लोक सेना आयोग की परीक्षा के लिए आवेदन दिया और यहां पर 398 पोस्ट थीं इनमें से रुवैदा को 25वीं रैंक प्राप्त हुआ। पिछले कुछ सालों में कश्मीर घाटी में सरकारी नौकरियं के लिए युवाओं का खासा रुझान रहा है और रुवैदा सलाम की सफलता की कहानी उनकी पीढ़ी के लिए एक मिसाल है और आशा है कि उनकी इस सफलता से और भी लोग अपनी बेटियों को पढ़ाने के लिए आगे आएं और घाटी का माहौल बदल सके।