15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ था जो पिछले 200 सालों से ब्रिटिश रूल का गुलाम बना बैठा था। ये लड़ाई साल 1857 से शुरु हुई और साल दर साल क्रांतिकारी पैदा होते चले गए। एक के बाद लोगों ने देश के नाम खुद को शहीद कर दिया लेकिन फिर भी आजादी हाथ नहीं आई। समय के साथ कई क्रांतिकारी पैदा हुए और इनमे देश की बेटियां भी रही हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ पुरुषों ने ही इस आजादी की लड़ाई लड़ी बल्कि महिलाओं ने भी खूब दिलदारी दिखाई। इन क्रांतिकारी सेनानियों को हम सबकी तरफ से शत-शत नमन है। इन सबकी तस्वीर के साथ हम आपको इनके बारे में भी बताएंगे।
देश के लिए कुर्बान हुईं ये क्रांतिकारी सेनानी
गुलामी का दर्द वो ही समझ सकते हैं जो इसे झेल चुके हों। वो दर्द शायद इतना असहनीय था जिसने कुछ लोगों को ज्यादा कठोर बना दिया। सोचने पर मजबूर कर दिया कि गुलामी किस्मत नहीं हो सकती और आजादी का हक हम सबको है। शायद इसी सोच के साथ उन्हें क्रांतिकारी बना दिया और अंग्रेजों के खिलाफ वो चट्टान मिला जिसे तोड़ना मुश्किल था। भारत को आजाद कराने में कई स्वतंत्रता सेनानी आगे आए लेकिन इन महिलाओं ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
मातंगिनी हाजरा को भारत छोड़ो आंदोलन की चैंपियन माना जाता है। लोगों पर इनका इतना प्रभाव पड़ा कि अंग्रेज इस बात से डरने लग थे। उन्हें डर था कि लोगों को आजादी के लिए उकसाने में ये कामयाब रहेंगी। अंग्रेजों ने उनके हर काम को असफल बनाने की ठानी थी लेकिन हाजरा पीछे नहीं हटती थीं और अंत में अंग्रेजों ने उनकी हत्या करा दी थी।
भारत छोड़ो आंदोलन में भोगेश्वरी फुकनानी का भी अहम किरदार था। जब क्रांतिकारियों ने बेरहमपुर में अपने कार्यालयों का नियंत्रण वापस लिया तब उस समय माहौल में पुलिश छापा मारकर आतंक फैला दिया था। उस समय क्रांतिकारियों की भीड़ ने मार्च करते हुए वंदे मारतरम् के नारे लगाए थे। उस भीड़ का नेतृ्व करने वाली भोगेश्वरी ने किया था और उस समय मौजूद कैप्टन को मारा जो क्रांतिकारियों पर हमला करवा रहे थे। बाद में अंग्रेजों ने इन्हें गोली मरवा दी थी।
वेलु नचियार शिवगंगा रियासत की महारानी थीं और वो भारत में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाली पहली वीरांगना थीं। उन्हें तमिनाडु में वीरमंगई के नाम से भी प्रसिद्धि मिली। उन्होने अपने प्राण देश के लिए गवां दिए थे।
आजादी की लड़ाई में 17 साल की कनकलता भी शामिल हुईंष नाबालिक होने के कारण उन्हें आजाद हिंद फौज में शामिल नहीं किया गया फिर भी उन्होने हार नहीं मानी और मृत्यु बहिनी में शामिल हो गईं। साल 1924 में असम में पैदा होने वाली कनकलता असम के सबसे महान योद्धाओं में एक थीं। वो असम से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा शुरु की गई स्वतंत्रता पहल के लिए करो या मरो के अभियान में थी और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ही असम में भारतीय झंडा फहराने की सजा उन्हें अपने प्राण गंवाकर मिली।
चंद्रशेखर आजाद के काकरी षड़यंत्र में गुप्तचर के रूप में शामिल होने वाली राज कुमारी गुप्ता का काम क्रांतिकारियों को संदेश और आगेन्यशास्त्र ले जाकर देना था। ऐसी ही एक यात्रा के दौरान अपने अंडरगारमेंस्ट्स में आग्नेयास्त्र छिपाते हुए उन्हें तीन साल के बेटे के साथ ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तर कर लिया था।
कमलादेवी देशभक्त नेता के रूप में सक्रीय रही हैं और ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार होने वाली पहली महिला रहीं। इसके साथ ही विधानसभा के लिए पहली उम्मीदवार भी थीं और उन्होने मुख्य रूप से भारत में महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार लाने की दिशा पर काम किया। थिएटर और हस्तशिल्प जैसी खोई प्रथाओं को फिर से जिंदा किया था। उन्हें समाजसेविका के रूप में पद्मभूषण और मैग्ससे से भी सम्मानित किया गया था।
लक्ष्मी सहगल भारत की स्वतंत्रता सेनानी तीं जो आजाद हिंद फौज की अधिकारी और आजाद हिंद सरकार में महिला मामलों की मंत्री के पद पर थीं। वे व्यवसाय से डॉक्टर थीं जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सुर्खियों में आई थीं. द्वितीय विश्व युद्ध में अपनी भूमिका के लिए बर्मा की जेल मे सजा काटकर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित सेन में खुद को नामांकित करने के लिए भारत लौट आई थीं। वे आजाद हिंद फौज की रानी लक्ष्मी रेजिमेंट की कमांडर के तौर पर काम किया।
मूलमती स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल की मां थीं, जिन्हें ब्रिटिश राज ने मैनपुरी और काकोरी षणयंत्र में भूमिका के लिए फांसी पर चढ़ा दिया था। एक साधारण सी दिखने वाली मूलमती ने स्वतंत्रता आंदोलन के अपने संघर्ष में अपने बेटे का समर्थन किया था।