बहुत से इंसान महत्वकांक्षी होते हैं लेकिन हर किसी को वो मुकाम नहीं मिल पाता है जो वे चाहते हैं। हर किसी का जीवन परेशानियों से भरा होता है खासकर गरीबी में इंसान कुछ नहीं कर पाता। अगर वो समय रहते कुछ करना चाहता है और पैसों की कमी होने के कारण हम अपना मनपसंद प्रोफेशन नहीं चुन पाते। ऐसे में महत्वकांक्षी व्यक्ति कुछ ना कुछ करने की ठानकर आगे बढ़ता जाता है। इसी तरह से पटना के रहने वाले एक शख्स ने किया जब गरीबी के कारण वे डॉक्टर नहीं बन पाए तो अपनी दवा की कंपनी बना दी। इनका नाम संप्रदा सिंह है और इनका निधन 27 जुलाई, 2019 तको हो गया।
संप्रदा सिंह से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें
साल 1925 में बिहार के जहांनाबाद जिले के छोटे से गांव ओकरी में एक किसान के घर जन्में संप्रदा सिंह ने एक समय में बहुत गरीबी झेली है। बचपन से वे पढ़ने में बहुत तेज थे और डॉक्टर बनना चाहते थे लेकिन हालात उन्हें ऐसा करने नहीं दे रहे थे। इसके बाद साल 1953 में पटना में इन्होंने एक दवा की छोटी सी दुकान खोल ली क्योंकि ये डॉक्टर लाइन से जुड़े रहना चाहते थे। उनके लिए ये एक समझौता था क्योंकि इनका सपना कुछ और ही था जो हो नहीं पाया। मेडिकल कॉलेज में प्रवेश नहीं मिलना इन्होंने दिल पर ले ली और फिर दवा विक्रेता बनकर डॉक्टर्स के आस-पास रहने लगे थे। साल 1960 में पटना मे ही इन्होंने फार्मास्युटिकल्स डिस्ट्रिब्यूशन फर्म मगध फार्मा खोल ली। मेहनत और मिलनसार स्वभाव के कारण ये कई बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के डिस्ट्रीब्यूटर बन गए और दवा बेचना उनकी नियति में ही था।
दवा विक्रेता से दवा निर्माता बनने का संकल्प उन्हें मुंबई ले आया और यहां पर वे साल 1973 में एल्केम लेबोरेटीज खोल लिए। सीड कैपिटल बहुत कम होने के कारण शुरुआती 5 सालों तक इन्हें संघर्ष करना पड़ा था लेकिन साल 1989 में इनकी जिंदगी में एक टर्निंग प्वाइंट आया और जब एल्केम लैब ने बनाया एंटी बायोटिक कंफोटेक्सिम का जेनेरिक वर्जन टैक्सिम तो ये सपल एक्सपेरिमेंट साबित हुआ। इसकी इन्वेंटर कंपनी मेरिओन रुसेल ने एल्केम को बहुत छोटा प्रतिस्पर्धी मानकर गंभीरता से नहीं लिया। फिर फ्रेंच बहुराष्ट्रीय कंपनी से एक गलती हुई और किफायती मूल्यों के कराण टैक्सिम ने मार्केट में उन्होंने अपनी ही दवाईयां फैला दीं। धीरे-धीरे लोग इनका नाम जानने लगे और इनसे ही प्रोडक्ट लेने लगे।
30 देशों में फैला लिया अपना काम
एल्केम लेबोरेटरीज आज फार्मास्युटिकल्स और न्यूट्रास्युटिकल्स बनाने लगी है और 30 देशों में अपना कारोबार फैला लिया है। फोर्ब्स इंडिया ने टॉप 100 भारतीय कुबेरों में संप्रदा सिंह को 52वे नंबर पर रखा है। 1.8 बिलियन डॉलर निजी प्रॉपर्टी के मालिक संप्रदा सिंह को पहले बिहारी बिजनेसमैन का टैग हासिल हुआ। उम्र के एक पायदान पर पहुंचने के बाद संप्रदा सिंह थक गए थे लेकिन हार नहीं मानते थे। बिहार में वे 100 करोड़ के निवेश से एग्रो फूड यूनिट स्थापित कर रहे थे जिसमें शुगर फ्री टॉफी, रसगुल्ला और ग्लूकोज बिस्किट बनाए जाएंगे। अपने इस प्रोजेक्ट को अधूरा छोड़कर संप्रदा सिंह 94 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए।