सितंबर के महीने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ये बात सामने आई कि देश में नागरिक संहिता लागू करने के लिए अब तक कोई प्रयास नहीं किया गया। जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने एक मामले के फैसले में ये टिप्पणी की। अदालत ने इस बारे में कहा कि गोवा इसका शानदार उदाहरण है जहां पर धर्म से दूर हटकर समान नागरिक संहिता लागू है। ये तब है जब सुप्रीम कोर्ट ने ही तीन मसलों में साफ तौर पर हिमायत की थी। ये तो हमने आपको यूनिफार्म सिविल कोड से जुड़ी जानकारी दे दी लेकिन Uniform Civil Code होता क्या है इसके बारे में तो आपको जरूर जाना चाहिए।
देश में पिछले कुछ दिनों से एक नए कानून की बात चल रही है जिसे यूनिफार्म सिविल कोड बताया जा रहा है। ऐसा पहली बा नहीं है कि यूनिफार्म सिविल कोड की बात चली हो, देश में आज़ादी के बाद कई बार इस मुद्दे को उठाया गया और इसका सबसे पहला जिक्र भारत में ब्रिटिश राज के समय आया। इस समय अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत सभी स्थानीय सामाजिक या धार्मिक प्रथाओं की दोष-निवृत्ति करना चाहते थे और वो समय साल 1840 का था। इसके उपरांत स्वतंत्र भारत में शाह बानो केस के साथ ये मुद्दा एक बार फिर आया जो आज तक बहस का कारण बना हुआ है।
क्या है Uniform Civil Code?
समान नागरिक आचार संहिता यानी Uniform Civil Code का मतलब भारत के नागरिक के लिए एक समान कानून होता है। इसे हम निष्पक्ष कानून भी बोल सकते हैं और नागरिक चाहे किसी भी धर्म या जाति से हो सबके लिए कानून होना चाहिए। समान नागरिक आचार संहिता के बारे में संविधान के अनुच्छेद-44 के अंतगर्त राज्य की जिम्मेदारी ये है कि इस कानून को लागू करने के बाद भी ये लागू नहीं हो पाया। ये एक तरह से धर्म निर्पेक्ष कानून है जिसपर किसी धर्म का प्रभाव नहीं होता है। यूनिफार्म सिविल कोड सभी तरह के धर्म संबंधित पर्सनल लॉ को खत्म करता है। गोवा राज्य में यूनिफार्म सिविल कोर्ड लागू है और देश के कई मामलों के लिए यूनिफार्म सिविल कोड कानून है लेकिन अगर बात शादी, तलाक जैसे मुद्दों की आती है तो आज भी पर्सनल लॉ के अनुसार ही फैसले होते हैं। ये एक निष्पक्ष कानून है और अगर नागरिक आचार संहिता यानी Uniform Civil Code लागू हो जाए तो हर मजहब के लिए एक जैसा कानून आ जाता है। नागरिक किसी भी धर्म या जाति का हो उनमें भेदभाव नहीं रहेगा।
भारतीय संविधान में यूनिफार्म सिविल कोड (Uniform Civil Code in Indian Constitution)
भारतीय संविधान में भी इसका जिक्र हुआ और इसका वर्णन संविधान के 44वें आर्टिकल में आता है, इसमें जिसका जिक्र करते हुए लिखा गया कि सरकार इस बात का प्रयत्न कर सकती है कि वे देश में समान नागरिकता के लिए सरकार यूनिफार्म सिविल कोड लाने की कोशिश होगी। भारत की आजादी के बाद डॉ भीमराव अंबेडकर और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने हिंदुओं के लिए हिंदू कोड बिल लाने का मुद्दा उछाया और इसका विरोध किया गया। इसपर सवाल उठाया गया कि केवल एक धर्म के लिए विशेष कानून लाना कहां तक जायज़ है। इसकी जगह पर एक ऐसे कानून लाने की बात कही गई जो सभी धर्मों के लिए एक जैसा हो और इसके अंदर सभी धर्म के पर्सनल लॉ का विलय किया जा सके। वर्तमान में चल रहे समय में हर धर्म के लोगों से जुड़े मामलों को पर्सनल लॉ के माध्यम से सुलझाया जाता है, जबकि पर्सनल लॉ मुस्लिम, पारसी और ईसाई समुदाय का है जबकि जैन, बौद्ध, सिख और हिंदू हिंदू सिविल लॉक के अंतर्गत आते हैं।इस समय तुर्की, सूडान, इंडोनेशिया, मलेशिया, बांग्लादेश, मिस्र और पाकिस्तान में यूनिफार्म सिविल कोड लागू है। अलग-अलग धर्मों के अपने कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ने लगता है। समान नागरिक संहिता लागू होने से ऐसी परेशानी से निजात मिल जाती है और अदालतों में सालों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द हो जाते हैं। शादी, तलाक, गोल लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर वो किसी भी धर्म या जाति से हो तो इससे हर किसी को कानून पर भरोसा हो सकता है। सभी के लिए कानून में एक समानता से देश में एकता बढ़ेगी और जिस देश में नागरिकों में एकता होती है तो किसी भी तरह का वैमनस्य नहीं हो पाता है और सबसे बड़ी बात कि देश तेजी से आगे बढ़ता है। देश में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति पर असर पड़ेगा और राजनीति दल वोट बैंक वाली राजनीति नहीं कर पाएंगे। समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में सुधार आया है। कुछ धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के लिए अधिकार सीमित रखे गए हैं और इतना ही नहीं मगिलाओं का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में भी एक समान नियम लागू हो सकेंगे।
क्या है हिंदू पर्सनल लॉ? | What is Hindu Personal Law
भारत में हिंदुओं के लिए हिंदू कोड बिल सामने आया, इस विरोध के बाद देश में इस बिल को चार हिस्सों में बांटा गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे हिंदू मैरिज एक्ट, हिंदू सक्सेशन एक्ट, हिंदू एडॉप्शन एंड मैंटेनेंस एक्ट और हिंदू माइनोरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट में बांटा गया था। इस कानून ने महिलओं को सीधे तौर पर सशक्त बनाया और इसके अंतर्गत महिलाओं को पैतृक और पति की संपत्ति में अधिकार मिला। इसके अलावा अलग-अलग जातियों के लोगों को एक-दूसरे से शादी करने का अधिकार है लेकिन कोई व्यक्ति एक शादी के रहते दूसरी शादी करने का अधिकार नहीं है।
क्या है मुस्लिम पर्सनल लॉ? | What is Muslim Personal Law
देश के मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड है, जिस कानून के अंतर्गत शादीशुदा मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को सिर्फ तीन बार तलाक कहकर तलाक दे सकता है, हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में तलाक के और भी दूसरे तरीके हैं लेकिन उनमें से तीन बार तलाक भी एक प्रकार का तलाक बनाया गया है जिसे मुस्लिम विद्वान इस्लाम शरीयत के खिलाफ मानते हैं। तलाक के बाद अगर दोनों फिर से शादी करना चाहते हैं तो महिला को पहले किसी और पुरुष के साथ शादी करनी होगी, उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने होंगे, इनकी भाषा में इसे हलाला कहते हैं। इससे तलाक लेने के बाद ही वो अपने पति से फिर से शादी कर सकती है। मुस्लिम लॉ के मुताबिक महिलाओं को तलाक देने के बाद पति से किसी तरह के गुडारे भत्ते या संपत्ति पर अधिकार नहीं होता है। तलाक लेने के बाद मुस्लिम पुरुष तुरंत शादी कर सकता है जबकि महिलाएं ऐसा नहीं कर सकती हैं।
क्या करेगा यूनिफार्म सिविल कोड?
देश के कई छोटे-बड़े सिविल राइट दल लगातार सरकार से इस बात की मांग करते रहे देशभर में यूनिफार्म सिविल कोड जारी किए गए। इससे धार्मिक रूढिवादीता के कारण दबी कुचली जिंदगियों को इंसाफ मिले। ये मुद्दा कई धर्मों में लगातार विवाद का कारण बना रहा है क्योंकि इसके जरिए धर्म संबंधित रूढ़िवादी विचारधाराओं पर रोक लगी। इस कानून के आने पर इन मुद्दों पर असर पड़ा..
1. इसके लागू होने से हर मजहब के लिए एक जैसा कानून आया और धार्मिक पर्सनल लॉ की एहमियत समाप्त हुई।
2. इस कानून के आने से बहुविवाह, तीन तलाक जैसी कुप्रथाओं पर रोक लगी। मुस्लिमों के तीन-तीन शादी करने और महज तीन बार तलाक बोलने पर रिश्ता खत्म करने वाले कानून पर रोक लगी। जैसा कि आप जानते हैं कि तीन तलाक का बिल सितंबर में ही लोक और राज्य सभा में पास हो चुका है।
3. यूनिफार्म सिविल कोड की बात जब भी लोगों के बीच आई तो ये एक मुद्दा बन गया। बहुत से लोगों ने इसका विरोध किया लेकिन जब ये लागू हुआ तो लोगों को इसे मानना ही पड़ा।
4. इसमें ध्यान देने वाली बात ये है कि इस देश में सभी नागरिकों के लिए एक तरह का कानून बना और धर्म के नाम पर लोग अपनी-अपनी दलीलें नहीं दे सकें।
क्या हैं यूनिफार्म सिविल कोड की खासियत (Features of Uniform Civil Code)
यूनिफार्म सिविल कोड की बातें पूरी तरह से निष्पक्ष और समानता पर ही आधारित हैं। इसका वर्णन हम आपको नीचे लिखे कुछ बिंदुओं के जरिए बताएंगे..
1. यूनिफार्म सिविल कोड सामाजिक परिवर्तन का एक बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण अंश माना जाता है। इसका प्राथमिक उद्देश्य देश के सभी नागरिकों में समानता और एकरूपता स्थापित करना ही है। दुनिया के कई देशों में इसे लागू कर दिया गया है।
2. ये कानू पूरी तरह से निष्पक्ष है जो हर धर्म के प्रति बराबर से सोचता है। इसमें पुरुष, महिलाएं, जाति और धर्म सभी के अधिकारों को बराबर किया गया है।
3. तत्कालिक समय में अलग-अलग धर्मो के नियम कानूनों की वजह से कई तरह के केस पर फैसला देते हुए न्यायपालिका पर इन धार्मिक नियमों का बोझ पड़ता है और इस कोड के देशभर में लागू होने से न्यायपालिका अपना काम ढंग और तेजी से कर सकता है।
4. सभी धर्मों के लोगों के लिए एक तरह का कानून आने से देश की एकता और अखंडता को बढ़ावा मिला। देश कानूनी रूप से और भी ज्यादा विकसित होने की ओर अग्रसर हो सकता है।
5. इस तरह के एक नए समाज के लिए यूनिफार्म सिविल कोड जैसे कानून का आना बहुत ही अनिवार्य था, हालांकि कुछ लोगों ने इसमें एतराज जताया लेकिन समय आने पर ये सबको स्वीकार होगा।