और क्या कहना?
लड़ो तो शेर की तरह, चलो तो भेड़ की तरह, बहों तो नदी सागर की तरह, चमको तो सूरज चाँद सितारों की तरह, फैलो तो पृकृति की तरह, लहराओ तो हवा की तरह, जलो तो जंगल की आँग की तरह, उड़ो गिद्ध चील और बाझ की तरह, छावो तो नीले आसमान की तरह। गठबंधन करो तो रेल की तरह, प्रेम करो तो चकोर पँछी की तरह, बिरह तो राधा कृष्ण का ही अच्छा था। युद्ध तो नेवला साँप ही लड़ता है। घर न हो दीमक की तरह। आते जाते रहो दिन और रात की तरह। गठबंधन न हो धागा और फूल की तरह। निभाना मांग और सिंदूर की तरह। निकाले अगर आवाज तो कोयल की तरह। बादल बारिश तो आकर चले जाते है, किसी मौसम की तरह।