वर्दी
विश्वास मानव मे नही उसकी वर्दी मे होता हैं। कुर्सी का कलर एक हो सकता हैं पर वर्दी का नहीं। कुछ बुद्धजीवियों ने यह तय किया की इस कुर्सी के लिए इस कलर की वर्दी जमेगी। जवान, वकील, डॉक्टर, मास्टर, जज, राजा, नेता, किसान सब की एक वर्दी को उनकी योग्यता के अनुसार बनाया लेकिन आज वह वर्दी भी मायने नहीं रखती हैं। अब सभी अपने जाति, धर्म, मजहब, व काम के हिसाब से वर्दी पहनते हैं। अगर कोई बाबा नेता बना तो वह लंगोटा व साधुई भेष मे दिखेगा क्यो न वह नेता हो। अगर बिखरी आईएस बनेगा तो वह कटोरा साथ रखेगा। किसान डॉक्टर बना तो अस्पताल मिट्टी से सने पैरो के साथ बैल हल के साथ अस्पताल जाएगा। चोर वकील बन गया तो वह अपने चेहरे मे काला कपड़ा बांध कर ही जाएगा ताकि वह यह साबित कर सके की हम कौन है और अब क्या हैं? आवारा टीचर बन गया तो वह जींस टी शर्ट मे विद्धयालय जाएगा।
वर्दी और योग्यता को एक कोने रख देते हैं । जिस हालत से आए हैं उसी वर्दी मे दिखना चाहते हैं। यह उस वर्दी का सरासर अपमान हैं जो उसकी योग्यता को देखते हुए बनाया गया हैं। इससे से अच्छे तो आम इन इंसान हैं उनमे कोई विश्वास करे या न करे वह अपने काम को करते रहते हैं। आज लोग जिस जगह हैं उस जगह की वर्दी को पहनने से अपना अपमान समझते हैं। जब बाबा ही रहना था तो नेता क्यों बने उसी भेष मे लोगो की सेवा करते रहते? हमे लगता हैं की आने वाले समय मे वर्दी को त्याग दिया जय सब को आदिमानव फिर से बना दिया जय। किसी कोई चोला ओढ़ने की जरूरत नहीं किसीसे डरने की जरूरत नहीं। लोकतंत्र, प्रजातंत्र सभी एक घाट मे पानी पीने लगेगे न नौकरी की झंझट न किसी को किसी बैर सभी प्यार बाटेंगे किसी को किसी राजा की जरूरत नहीं ।यह वर्दी ही असमानता फैला रखी हैं इसे ही खत्म कर देना चाहिए जब मानव अपनी वर्दी को अपने योग्यता के अनुसार नहीं पहन सकता।