अभिब्यक्ति हेराई हैं।
हमरे लेखक हेराने हैं ...
कही लिखते मिले तो भईया हमे बता दइयों।
राजनीति मे अपने वजूद को भुलाने हैं।
खोकर मीडिया के हो-हल्ला मे,
सामाज को रचने वाले शब्द हेराने हैं...
कवि, ब्यंग, शायर, गजल सभी बौराने हैं,
खोज-खाज राजनीति के चुटकले उन्हे फैलाने हैं।
सच कहने व लिखने से लेखक अभी डेराने हैं ...
खोकर अपनी अभिब्यक्ति को, होकर डामाडोल।
चुनाव लड़ने वाले नेताओं से घबराने हैं ...
हमरे लेखक हेराने हैं...
कही लिखते मिले तो भईया हमे बता दइयों।
गाँव मे ढूंढा, शहर मे ढूंढा कालेज संस्थानो मे ढूंढा।
सच्ची बाते कहने से अभी सभी डेराने हैं...
हमरे लेखक हेराने हैं ...
कही लिखते मिले तो भईया हमे बता दइयों।