विक्रम
सुबह की पहली किरणों के साथ झकरकटी में।
लगा था पुल में जाम सुबह भी शाम की तरह।
कानपुर की विक्रम भी क्या कट मरती है रोड़ में।
बच गए तो किस्मत ठीक, ठोक दी बदकिस्मती आपकी।
देख के चलबे, सुबह सुबह मरने चले आते कहाँ से।
विक्रम में लिखा भी था, किधर को भी मुड़ सकती हूँ।
बिठूर 14 किलोमीटर दूर था। पुल पर तगड़ा जाम था।
चल हट पीछे गुरु की कृपा है, दो कदम के भी दस दे।
समझ से परे था किधर को जाना है, पीछे की... पो....
से आगे ही बढ़ना पड़ा। रास्ता सीधे ही जा रहा था।
कार्य प्रगति पर कृपया धीरे चले, आगे शकरी पुलिया है।
जय हो महाकाल की, उचित दूरी बनाकर रखे, cng.
जाम घटता गया, आगे बढ़ता गया। लाल बत्ती से किधर गई वह तो वह जाने । मुझे अभी आगे जाना था।
चिकनी सड़क छूट चुकी थी। टूटी फूटी सड़क में गाड़ी उछलने लगी। बाए तरफ मुड़े साइनबोर्ड हरा था, जिसमे यह लिखा था। यह सड़क सीधे गंगा जी के लिए जाती है।
अनगिनत विक्रम मिली जिनका रंग हरा था। जिनका मुड़ना रुकना मन को भा गया। सड़क सीधी थी वह इधर से उधर कटती रही। up 78 बाकी के नंबर विक्रम के अनुसार।