बसंत पंचमी
दिली अरमान थे माँ से मिलने के सो मिलने चले आए दरबार मे।
माँ का प्रेम अजीब हैं वह अपने नजदीक बैठने के लिए लोरी सुनाती हैं।
लोरी वह जो मन को शकुन देती हैं आंखो मे नींदियाँ ला देती हैं।
आंखो मे अपने ममता का आँचल बिछा देती हैं, जिसकी छाया मे कौन बालक नहीं सोना नहीं चाहेगा? वह उसका पल भर का प्रेम एक जीवन को लंबा जीने का सलीका देती हैं। अपनी महक और खुशबू से आत्मा को ओतप्रोत कर देती हैं । यह वीणा वादनी माँ मन मे गीत-संगीत, पठन-पाठन को कंठस्थ करा देती हैं जो ताउम्र नहीं भूलता।