कत्ल हुआ।
नजरें कत्ल करती रही, दिल सहता रहा।
खंजर और कोई लिए, दिल को छेदता रहा।
लहूँ बहता रहा, उसकी आखरी सास तक।
जाने अनजाने में, करीब गया साए की तरह।
वह साया भी काम न आया, कफ़न बन गया।
हवाओं ने जोर दिया, कफ़न को उड़ाने के लिए।
कफ़न मंजरी से लिपटा रहा, उसकी चाहत के लिए।
गाहे बगाहे मुलाकात हो जाए, समशान जाते हुए।
आँग की लपटें उठती रही, वह आएंगे इस दर पर।
सुलगती आँग भी बुझ गई, बिखरी पड़ी अस्थियों में।
हवाओं ने उड़ाने की कोशिश बहुत की, अस्थियों को।
पर वह उड़ी नही, घुली नही, मिट्टी में दफन होने तक।
गुनाह बस इतना रहा, दिल नज़रे मिलाए बैठा रहा।