टिकरी बॉर्डर से।
इतिहास गवाह है, राणा भी काफिले में आया था।
मरने के बाद आज भी उनका काफिला आबाद है।
देश की उन तमाम सड़को के किनारे बसें है।
जिन्हें लोग बैलगाड़ी वाले लोहार कहते है।
वह प्राचीन इतिहास को जिंदा किए हुए अपनी जिंदा दिली से जिए जा रहे है। उस वक्त की सरकार उन्हें बागी कहती थी।
लिखा यह भी जाएगा, टिकैत काफिले में आया था।
देश की उन तमाम सड़को में ट्रैक्टर ट्राली का काफिला होगा, जिन सड़को को देश का हाइवे कहते है।
मानता हूँ हुकूमत का सैलाब काफिले में आएगा,
किसान काफिला भी कमजोर नही यह भी इतिहास के पन्नो में लिखा जाएगा। किसानों के बगावत और आँसूओ को ।
अगर जिद में अड़ गए किसान तो यह भी हाईवे के हमराही बन जाएंगे। कल का इतिहास इनका भी मजाक बनाएगा, जैसे सड़क के किनारे बसे लोहारों का उड़ाया जाता है।
कोई किसान को आवारा कहेगा,कोई बंजारा कहेगा, न कुछ कह सके तो, परजीवियों की जुबान देकर, जुर्म ढहा कर इन्हें भी, बागी कहा जायेगा।
टिकरी बॉर्डर इस बात का गवाह होगा एक तरफ किसान, की ट्रैक्टर ट्राली, दूसरी तरफ बैल गाड़ी वाला लोहार होगा। इन दोनों के बीच जवान पैर जमाए खड़ा होगा।