जिधर जिंदगी उधरी मौत।
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में, किसी को फुरसत कहाँ?
सुबह की हड़बड़ी में पानी का टैंकर, गली में हॉर्न बजा रहा था।
स्वच्छता अभियान के तहत, एक सावला लड़का झाडू लगा रहा था।
मन कुंछित दबे पांव, मजदूर काम पर जा रहा था।
मौत किसको कहाँ ले जाए? यह जाने वाले को पता न था।
भागा वह भी था, भूखा पेट रोटी का टुकड़ा दबाए हुए।
खा न सका वह भी रोटी का टुकड़ा, सड़क के किनारे।
टैंकर का पिछला पहिया, उसकी मौत का कारण था।
भागती दौड़ती सड़क में, वह एक ही आवाज़ देकर शांत था।
टैंकर रुक और आगे चला गया, रुके कदम पीछे किया, बोला मर गया साला।
इस अजीब घटना का कोई नही गवाह था, जो इसका विरोध करता।
उसकी उस एक आवाज़ ने, अपनो को बुला लिया था।
वह भी उसको देख सूंघ, पलट कर गली को सुना छोड़ गए।
क्या करते वह भी? वह भी तो गलियों के बादशाह थे।