बंजारे (बन+जा+रे)
न धन चाहिए न दौलत बस, अपना हक चहिए।
हक मांगने आए थे, हक मिला वपास हो लिए।
ये तो किसान थे, बंजारों की तरह सड़क पर बसे।
किसानों के घर खेत सब थे, सो वह वपास हो लिए।
किसानों की जीत है, उन्होंने अपने को बदला नही।
नाम तो अनेक मिले परजीवी, खालिस्तानी, आन्दोलनजीवी, किसी भी नाम को स्वीकार नही किया।
वरना वह भी बंजारों की तरह सम्पूर्ण जिंदगी गुजार जाते।
जिस पथ से हक मांगने आए, उसी पथ से वपास हो लिए।
बंजारों के कारवाँ सदियों से बनते उजड़ते आए है। किसानों का कारवाँ, उजड़ा नही स्थगित किया गया है।