न वर्दी, न तिरंगा, यह तो खूनी कफ़न हैं ।
वर्दी मे हसता खिलखिलाता मेरा सपूत दिखता हैं वह चेहरा मेरी आंखो मे चमकता हैं। उसकी बाजुओ मे लटकती बंदूक खिलौना लगती हैं। वह उस खिलौने से न खेल सका। वह उस पल को न समझ सका न खेल सका, अपनी पत्नी, माँ, बच्चों को छोड़ गया, रोने की किलकारी सब मे, लिपटे कफ़न तिरंगे मे।
उन गद्दारो से कह दो अभी विरंगनाए मरी नहीं, अगर हैं हिम्मत उनमे तो करे सामना, माँ, बहन-बेटियाँ अभी हारी नहीं । कर देंगी उनका कत्ल अपनी तलवार और बाजुओं से, बारूद राफेल की जरूरत नहीं।
जब हो भाई अपना दुश्मन, दे रहा कार-बारूद अपनों को दफनाने का।
कर दो छलनी सीना ऐसे गद्दारो का जिनको देश से प्यार नहीं।
माँ के आंखो से बहती आँसुओ की बूद नहीं वह दुश्मन के लिए गोली हैं।
बुझा देंगे उनके चिरागो को जो आतंक मे पनाह ले रहे हैं। यहाँ तो गैर नहीं, अपने ही भाइयों की लाशे बिछा रहे हैं। नेता कहते हैं सरहद मे परिंदे भी पर नहीं मार सकते। यहाँ तो अपने ही पर मार रहे हैं। गैर मुल्को का सहारा लेकर।अपने ही मुल्क को निशाना बना रहे हैं।न वर्दी, न तिरंगा, यह तो खूनी कफ़न हैं। अब तो सब्र तभी होगा जब यह खूनी कफ़न दफन होने से पहले बदला ले-ले। ऐसे वीर सपूतो को नमन.