छोड़ेंगे न साथ।
परछाई ही हैं जो स्वयम के वजूद को और मजबूत करती हैं। बाकी तो सभी साथ छोड़ देते हैं। परछाई हर वक्त साथ रहती हैं। दिन हो तो आगे-पीछे अगल-बगल और जैसे ही ज़िंदगी मे अंधेरा होता हैं वह खुद मे समा जाती हैं पर साथ नहीं छोडती हैं। कभी आपसे आगे निकलती हैं और तो और वह आपसे बड़ी और मोटी भी हो जाती हैं कभी खुद के चरणो के नीचे आकर चरण स्पर्श करती हैं।