युगो-युगो तक
टूट कर गिर जाने से
उम्र कम नहीं हो जाती,
आसमान मे चमकोगे तारो की तरह।
आकार के छोटा बड़ा हो जाने से
कोई भूल नहीं पाता,
ईद-बकरीद,
पूर्णिमा, करवाचौथ मे चाँद पूजा जाता।
एक रंग मे ऊग कर,
उसी रंग मे डूबजाने से औकाद कम नहीं होती।
बन आंखो की रोशनी सारेजहाँ
की, छठ पर्व मे सम्मानित किया जाता।
सूख कर,
धूल-बनकर, फिर से अपनी जवानी मे बहना कोई बुरा नहीं।
भारत मे बहती गंगा,
यमुना, सरस्वती को कौन जानता नहीं?
जीकर असमानता मे अपने धैर्य
को खोया नहीं जिसने-
सहकर हजारो जुर्म,
किसी बोझ को अपने सर से उतारा नहीं,
होकर अज़र-अमर भूमि ने कभी किसी
को ललकारा नहीं।
जो देता आया सदियो से पानी
की फुहारो को, ना पार कर सका उसे कोई।
कभी बादलो,
हवाओ के बवंडरो मे घिर कर भी, अपने नीले रंग को खोया नहीं।
कितना भी कर लो मिटाने की कोशिश
ये मानव, यह तो युगो-युगो तक जाने जाएंगे।