मौके का फायदा।
कोरोना को मौके के तौर पर इस्तेमाल करें। और जो भी बाहर से आ रहे है वो रोड पर सुरक्षा से चले।क्योकि वह त्याग और तपस्या से अपने घरों में दस्तक दे रहे है। पहले जो त्याग और तपस्या करते थे वह सन्यासी कहलाए, और आज का मानव प्रवासी मजदूर। चेहेर पर मास्क लगा के अपने-अपने वतन पहुंचे, क्योकी इकीसवीं सदी का भारत लोकल और वोकल के संदर्भ में काम करने को तैयार बैठा है। "कहावत कहते थे जब गीदड़ की मौत आती थी तो वह शहर की ओर उड़ान भरता था" और अब युग बदल रहा जिसकी वजह से शहर के अस्पताल भी फेल हो रहे है। और मानव शहर से गाँव की ओर पलायन कर गांवो की आबोहवा में शामिल हो रहे है। कोरोना ने कायापलट करके प्रकृति की हवा, जल, ज्वाला,तूफान, भूकम्प सब मे काबू पा लिया है। मानव मानव से डरने लगे है गली, चौक, चौराहे से बचकर घर मे रहने लगा। हर चीज पर पाबंदी है, समय के घेरे में है। पहले लॉकडाउन एक शब्द था। आज लोग लॉक होने के साथ डाउन होने लगे है। इतना डाउन की आर्थिक शब्द अब जुबा में रहने लगे। आत्म व स्वाआर्थिक शब्द में बहने लगे है। हर कोई मौके की तलाश में रहने लगे है। सरकार क्या देगी ? क्या कहेगी? किसका काटेगी, कितना काटेगी इस से मजदूर नही सरकारी मुलाज़िम डरने लगे है। बहुत उठाया फयाद अब उस फ़ायदे से डरने लगे है। अभी तो युग ने करवट लिया है। अंगड़ाई तो अभी बाकी है।