जानू की बाते।
कोरोना कोरोना सब कोई कहे, भूखा कहे न कोई।
एक बार मन भूखा कहे, सौ दो सौ की भीड़ होए।
मोदी अंदर सबको रखे, घर से बाहर न निकले कोई।
मन की बात मोदी करे, सो बाहर उसकी चर्चा होए।
मम्मी एफबी में लिपटी रहे, बेटा-बेटी बैठे टीवी संग।
साथी शिकायत करने लगे,पापा नौकरी से आए तंग।
एक बार सिंग्नल मिले, भीड़ स्टेशनों में जमा होए।
हाथ हथेली मे मैल न मिले, बराबर साबुन से धोए।
गाँव गाँव सबकोई कहे, शहर कहे न कोए।
एक पैकेट लंच मिले, तब भूखा पेट शांत होए।
पैदल चले संकट मिटे, गांव घर आंगन मिले।
नैन से नीर बहे, कर गुहार परदेश में पीडा सहे।
रूखा सूखा खाइके, गाँव घर गलियां याद करे।
अब शहर से लौट चले, अपने गाँव घर की ओर।