कई राते
ठंडी बढ़ रही थी पूरा घर रज़ाई मे लिपटा हुआ था घर, आँगन,
चौपाल, बरोठ, रज़ाई मे बस सासों का चलना
व घुड़का ही सुनाई देता। नीले आसमान मे आधा चाँद अपनी सफ़ेद रोशनी के साथ घर के बाहर
से गुजरती सड़क को निहार रहा था। सड़क शांत थी दिन की तरह घोड़े के टापूओं की आवाज
नहीं थी बैलो की चौरासी नहीं बज रहे थे। मोटर के नाम मे उस सड़क से एक ठेला (ट्रक)
ही निकलता जिसके पीछे आधे से ज्यादा बचपन भागता दिखता एक सोर के साथ “ठेला वाला
ठेल दे, पीछे वाला पेल दे” वह औरत वाले चुटीले चमकीले लटका
कर आता उसके जाने के बाद सड़क मे धूल और बचपन ही रह जाता था।
काले सॉल मे लिपटी मम्मी नानी की चारपाई की तरफ से आई भाई को
हिलाते हुए देखा वह गहरी नींद मे था उसको रज़ाई के साथ एक तरफ करते हुए बैठ गईं
मम्मी रंग महावर के साथ अपने काले घने लंबे बालो को अपनी पीठ मे बिछा रखा था वह
उनकी पहचान थे। नानी की आवाज कई बार आ चुकी थी अरी सो जा क्यो उसकी याद मे आंखे
फाड़े बैठी हैं?
मम्मी ने उनकी किसी आवाज का जवाब नहीं दिया था। वह आज कुछ सोच रही थी पता नहीं
क्या और किसको सोच रही थी? सड़क से आने वाली हर आहट मे वह
चौकती। कई बार वह रज़ाई मे अपना मुँह छिपाती तो कही योहि गर्दन को सीधा करती।
मम्मी आज से पहले कभी दो बिस्तर नहीं लगाई थी आज वह दो बिस्तर
बिछा रखी थी वह बीच-बीच मे उठती उसमे पड़ी रज़ाई को पूरा-पूरा फैला देती भाई ने नींद
मे मम्मी को मजबूती से पकड़ते हुए अध निद्रा मे मम्मी के स्तनो को चूसने लगा वह अब
सॉल मे लिपटा चुका था। रज़ाई मे ठंडी हवा घुस चुकी थी। कुछ देर बाद उसको रज़ाई मे
दुपकाते हुए खड़ी हुई थूनी मे लटकती लालटेन की रोशनी को धीमा किया और दूसरे वाले
बिस्तर मे मम्मी रज़ाई से चिपट कर पैरो को सीधा किया वह अपने बालो को सीमेट कर
तकियाँ ही बनाया था की दरवाजे की कुंडी एक से दो बार खटकी सब कुछ शांत था मम्मी हल्के
पाव से नानी की चारपाई से बचते हुए दरवाजे के पास गईं। दरवाजे को खोला दरवाजे के
सामने काले कंबल मे लिपटा एक आदमी था वह अपने हाथ मे बीमारी मे पीने वाली बड़ी से
बोतल ले रखा था दूसरे हाथ से उस कंबल को पकड़ रखा था वह मम्मी के दूसरे वाले बिस्तर
मे आकर बैठ गया।
मम्मी जैसे गई थी वैसे ही वापस आकर बिस्तर मे बैठते हुए उनसे
लिपट गईं यह कहते हुए की जब तुम्हारी तबीयत खराब थी तो घर क्यो नहीं आए? मै तुम्हें कमा कर खिलाउंगी
तुम मुझे अपना कुछ समझते हो न। वह भी उनके बालो को सहालाते हुए पागल हो गई क्या
हैं? मुझे बड़ी बीमारी नहीं हैं। वह तो काम वाली जगह का पानी
ही नहीं सूट किया हैं, देख डॉक्टर ने यह वाली बोतल दिया हैं
पीने के लिए मम्मी लालटेन की लौ को तेज करते हुए कच्ची रसोई की तरफ गई जिधर शाम को
नानी सब को खाना खिलाती थी। वह फूल के लोटे मे पानी लेकर आई उन्होने पानी दिया यह
कहते हुए कुछ खाओगे क्या वह अपनी जेब से कुछ और दवा निकालते हुए बोले इन दवाओ से
एक-एक गोली निकाल कर दो मुझे दवा खानी हैं। नानी ने नीद मे आवाज दीया अरी अभी सोई
नहीं वह फिर से पहली की तरह शांत हो गई मम्मी ने उस आदमी को दवा दिया। वह उस आदमी
को बार-बार छूने की कोशिश करती। भाई के रोने की आवाज को सुनकर भागी-भागी आई उसे
थपथापाया। वह फिर से शांत हो गया वह पहले से खुश थी उसके आने के बाद से।
ऐसा पहले कभी नहीं देखा था मम्मी को जो आज किसी आदमी की सेवा
भाव मे लगी थी उसके जूते उतारते हुए मम्मी उन्हे वैसे ही रज़ाई मे लपेटती दिखी जैसे
भाई को लिपेटती थी। इस बार वह लालटेन को धीमा नहीं किया बुझा दिया। उसके बुझने के
बाद मम्मी उसी बिस्तर मे लेट गईं उनसे बात करने के लिए वह उन्हे सोने नहीं दे रही
थी। वह यही कहती अब तुम, तभी जाओगे जब बिलकुल ठीक हो जाओगे आप पैसे की फिकर मत करो मैने माँ के
साथ खेतो मे काम करके कुछ पैसा कमाया हैं यह देखो सोने की बाली बनवाई हूँ सोने का
फूल खरीदा हैं नाक के लिए। वह बस हाँ करते यह सब बेच दूँगी,
तुम हो तो यह सब हैं।
मेरी माँ भी कभी-कभी कहती अपने घर जा लेकिन अब मै अपना घर भी
इन्हे बना के दिखाऊँगी तुम बस ठीक हो जाव। अब तुम परदेस मत जाना बस मेरे साथ रहना
मै सब काम कर लूँगी मक्रन्दी भाई से बोलकर उनसे दो-चार बीघा जमीन लेकर उसमे टमाटर
की खेती करेंगे एक घर बनाएगे वह सब कुछ सुनने के बाद बोला। चुप हो जा सो जा मुझे
भी सोने दे मुझे खेत मे ही काम कराने के लिए मुझे, मेरे गाँव से लाई हैं। वह थोड़ा चुप रही अच्छा
कोई बात नहीं तुम जैसा चाहो वैसा करना तुम शहर कमाना मै खेतो मे काम करूंगी। यह
सुन, ले इस महीने की कमाई जो बचा सो ले आया हूँ। मम्मी की
आवाज मे अब थोड़ी से नमी थी। वह उन पैसो को गद्दे के नीचे छुपाती, बाते अब धीमी हो चली थी। सड़क शांत थी आसमान मे आधा चाँद ठहर गया था।
बड़े वाले का स्कूल मे दाखिला करना हैं छोटा वाला भी अब खेल खा
लेता हैं। अब आप परदेश मत जाना यही पास के शहर मे बहुत काम हैं कर लेना तब तक मै
सहेली के भाई से बोलकर घर बनाने का इंतजाम करती हूँ। अब तक सारी बातों का फैसला हो
चुका था नई जिंदगी की शुरुवात के लिए। गाँव के बाहर ऊसर मे जमीन खाली पड़ी थी। पहले
से सब प्लान था की आज की रात घर बना देना है जब बन जाएगा तो कोई कुछ नहीं करेगा
गाँव का जमींदार भी कुछ नहीं बोलेगा यह बात सहेली के भाई ने कह रखी थी वह भी गाँव
की एक हस्ती थी।
शाम होने को थी वही रोज वाला ठेला अपने जैसे और दो ठेला लेकर
आया वह भी ईटों से भरे हुए एक मे राबिस चूना था। मम्मी के बहन के लड़के, भतीज सब जल्दी घर आ गए थे।
मिस्त्री भी आ गया था रात के सन्नाटे मे आमने सामने की लंबी दो दिवारे खड़ी हो गई
गाँव के ऊसर मे खड़ी दीवारों मे किसी ने ध्यान नहीं दिया अगली रात बाकी का बचा काम
हो गया दो कमरो का घर बनकर तयार हो गया सामने एक चबूतरा जिसके ऊपर एक फूस का छप्पर
तन गया। वह बीमार आदमी कही भी नजर नहीं आया मम्मी सारा काम अकेले करती रही। महीने
के तीसरे शुक्कर की रात मम्मी अपना छोटा-छोटा सामान ले आई साथ मे एक काला लोहे का
बड़ा सा बक्सा जो मम्मी की शादी मे मिला था जिसमे भाई के ऊनी कपड़े रखे थे। मम्मी की
दो साड़ी जिसको मम्मी कभी-कभी पहनती थी एक छोटा सा खटोला जिसमे दोनों भाई सोते थे
वह भी साथ आया था मम्मी के नए घर मे।
वह थकी थी वह उनके शकुन की पहली रात थी। नानी की कही हुई बात आज
पूरी हुई थी की अपना घर बना ले। संझले वाले मामा, मम्मी के हम राही थे, वह
भी मम्मी के साथ अक्सर सर मे मुराईछा बंधे दिखते जब भी मम्मी काम को रात से आती, मामा जरूर दिखते। रात काफी हो चली थी बारिश का महिना था मेध काले घने
होकर भाई के साथ मुझे भी डरा रहे थे। पालतू बकरी रात को सोने वाले खटोले से बंधी
थी भाई रो रहा था वह मिनट-मिनट मे पूछता रात होने वाली मम्मी कहाँ हैं... जवाब तो
कोई था नहीं बस इतना मालूम था कि मम्मी टमाटर वाले खेत मे गई हैं वह अभी थोड़ी देर
मे आ जाएंगी वह रोता चिल्लाता भूखा था।
बकरी का दूध निकाल कर उस मे चीनी मिलकर ग्लास मे पीने के लिए
दिया वह दूध पीकर शांत था सामने नाले और तालाब के पानी मे जल रही दीपक की रोशनी पड़
रही थी। मेढक टर्रा- रहे थे मिरवा झन्ना रहे थे सड़क मे किसी के आने जाने की आवाज नहीं
थी। दूर से एक आदमी की आने की आहट हो रही थी बकरी खटोले से बंधी थी भाई अपने जूठे
ग्लास से खेल रहा था जब वह आदमी नजदीक आया वह नाना थे उनकी सफ़ेद मुछे गोरा चेहरा
लंबा पतला शारीर हाथ मे लाठी सर मे सफ़ेद लम्बी वाली धोती की पगड़ी वह भाई को गोद मे उठाते हुए मम्मी को भला बुरा कहने
लगे यह लड़की हमे बदनाम करके छोड़ेगी पता
नहीं कितना काम करेगी आज आने दे उसे मै कल यहाँ से भगाता हूँ। उनके इतना कहते ही
घर के दरवाजे बंद कर खटोला सर मे, हाथ मे बकरी की रस्सी पकड़ कर उनके पीछे-पीछे उसी बरोठ मे गए जहां पहले
मम्मी सोती थी। नाना भाई को खटोले मे लिटा दिया वह सो रहा था।
नाना काफी गुस्से मे थे कही जाना नहीं आने दो उसे और उसकी माँ
की खैर खबर लेता हूँ उनके जाने के बाद शकुन मिला कि चलो वह तो गए काफी देर बाद
मम्मी आई वह मिट्टी से सनी थी उन्होने भी नाना की तरह नाना को भला बुरा कहा और भाई
को गोद मे लेकर चल पड़ी पहली की तरह खटोला सर पर बकरी के गले मे पड़ी रस्सी हाथ मे
वह आगे-आगे बकरी खटोले के साथ पीछे-पीछे अभी घर मे दीपक जल रहा था खटोला रखते ही
दरवाजे को खोला और एक कथरी लाकर खटोले मे बिछाया कर भाई को लिटा दिया। वह सामने
मैदान मे गड़े नल के पास गई हाथ मुंह धोया और खटोले मे बैठ कर कहने लगी कल तू तो
स्कूल जाएगा। एक तेरा पापा हैं कि साथ देने के लिए राजी ही नहीं जैसे कि यह सब मै
अकेले ही बांध कर ले जाऊँगी वह हैं कि शहर से जल्दी नहीं आता रात को ही आता हैं
कही कोई देख न ले दुनियाँ भर के पति ससुराल मे कैसे रहते हैं? एक यह हैं कि बहुओ से भी गए
गुजरे हैं यह बात पहली बार सुना था कि वह आदमी पापा हैं जो रात को मम्मी के पास
आते थे।
वह आज गुस्से मे भूखी सोने लगी बासी रोटी देकर ले खा ले तू भी
सो जा। वह आएगा तो आज फैसला कर ही लेती हूँ कि चल मुझे अपने गाँव ले चल मेरे सास
ससुर सब हैं घर हैं खेत हैं जैसे यहाँ काम करती हूँ वैसे वहाँ करूंगी। मम्मी की
बातों को सुनकर लगा आज नाना मम्मी को भला बुरा कहें हैं इस बात से पापा के बारे मे
ऐसा बोल रही हैं। पापा भी आ गए साइकिल मे खाने का खाली टिफन साईकिल मे लटक रहा था।
गाँव के हिसाब से रात काफी हो गई थी पापा सामने वाले नल के पास गए और वापस आने
वाले ही थे कि सामने से नानी अपने आँचल मे कुछ छुपाए आई उसमे खाना था। नानी भी
मम्मी को धमकाते हुए... ले महिमान को बच्चो को खाना खिला ड्रामा मत कर पापा दूसरी
खाट डालकर बैठ गए पहली बार पापा को नजर भरकर देखा था यह पापा हैं।
उनसे चाहत ज्यादा बाढ गई नानी जो खाना लाई थी उसे पापा के पास
रख कर उनके पास खड़ा हो गया वह अपने कुर्ते मे लगी मिट्टी को हलियाते हुए कुर्ते को
साफ किया गालो मे हाथ फेरा अपने पास बैठा लिया पहली बार उन्होने छुआ था। मम्मी
झटके साथ उठी और कहने लगी अब मै और नहीं जीना चाहती तुमने मुझसे झूठ क्यो बोला? तुम शहर मे जाकर मजदूरी
करते हो और कहते हो कि मै काम सीख रहा हूँ। तुम्हें आज मेरे गाँव के भाई ने काम
करते हुए देखा हैं कल से जो तुम यह काम करने गए तो समझ लेना। यह झगड़ा यही खत्म हुआ
नानी का खाना पहली बार पापा के साथ खाया था। वह मम्मी से ज्यादा सुंदर दिख रहे थे। उनके चेहरे
के गड्डे आंखो मे ऊतर आए थे वह अब बड़े वाले की पहचान बन गए थे उनकी हल्की लाल आंखों ने उसके मन
मे जगह बना लिया था। उनका वह सफ़ेद कुर्ता पैजामा याद हैं जिससे उन्होने मिट्टी को
झरियाया था।
अब दोनों की रात एक दर्जी की दुकान मे गुजरती थी वह अब दर्जी बन
गए थे। बड़ा वाला स्कूल जाने लगा था हफ्ते मे एक दो बार ही दोनों घर जाते थे। मम्मी
अब खुस थी पापा सिलाई का काम करने लगे थे वह दर्जी की दुकान मंझीले मामा की थी। वह
मम्मी के हाथ का बना खाना सुबह शाम दे जाते थे। ठंडी की रात का खाना पापा हीटर मे
गरम करते दोनों खाते वह उसे बहुत चाहने लगे थे वह उन पर ही गया था ऊपर वाले ने बस उसकी
आंखे बदल दी थी। स्कूल जाना पापा के साथ रहना रोज़मर्रा मे शामिल हो गया था। आज की
शाम थोड़ा-थोड़ा बदली थी वह अपने भाई के पास आया था। वह मार रहा था कभी अपने हाथो से
लिपेट लेता वह उसे बाजार से खिलौना लाया था। वह उस खिलौने से खेल रहा था। मम्मी ने
रसोई मे अच्छी-अच्छी चीजे बनाई थी होली थी पापा के साथ जब साईकिल मे बैठ कर आया था
उसकापैर साईकिल मे फसने की वजह कट गया था खून निकला था डॉक्टर ने बड़ी मोटी पट्टी
बांधी थी। अब घूटूवन ही खिसकता था। वह होली उसे सही से याद नहीं हैं दर्द की वजह
से बस इतना याद हैं की ऊसर मे गाँव के लोगो ने पहली बार इतनी बड़ी होली जलायी थी की
आधा गाँव उसकी लपट मे चमक रहा था। गाँव छोटा था इधर की आवाज उधर गाँव के कोने मे रात
को गूंज जाती थी। होली की राख़ कई रातों तक सुलगती रही।
अब तो राते अक्सर सुनी गुजरती पापा फिर से परेदेस चले गए मम्मी
अपनी खेती के काम मे ब्यस्त रहती। गर्मी
की रात उस ऊसर वाली रेहू मे और ज्यदा चाँद के साथ सफ़ेद दिखती वह रेहू रात को खेलने
के लिए बुलाती इस ऊसर को देखने के लिए छह आंखे हो गई थी गाँव का घुआं इधर ही शाम
से आने लगता उनके आने के रास्ते से पता चल जाता गाँव मे कितने घर हैं? रात होने वाली थी गाँव की
तरफ से चार लम्बे तगड़े लोग आए उनके आते ही मम्मी सहम गई वह जानती थी यह वही लोग
हैं जिनकी जमीन मे यह दो कमरे का घर बना था। वह आए हम सब को घर से बाहर किया और
अपना ताला लगाकर कहने लगे या तो इसका पैसा दो या इसका दरवाजा इधर से उधर की तरफ कर
लो यह उन्होने इस लिए कहा था की उधर जगह कम हैं लेकिन जिधर नल लगा था उधर की जमीन
ज्यादा थी कई शाम समझौता हुआ आखिर कार दरवाजा दूसरी तरफ करना पड़ा तब जाके उस घर मे
सकूँ से रहने को मिला।
पहले तो कई राते योहि दूसरे के घर एक टूटती चारपाई मे गुजारनी
पड़ी। वह रात याद हैं की भाई कैसे उसमे झूलता हुआ सोता था। मम्मी यू ही उनकी हा
हजूरी करके रात गुजारी थी। मम्मी ने पापा को पहली बार पत्र लिखवाया था की तुम
जल्दी से घर आ जाव वह गया जवाब आया पूरा एक महिना होने वाले थे पापा रंजीत की शादी
मे आने वाले थे रंजीत दादा का लड़का था वह भी उसी गाँव मे रहते थे उन्ही की शादी
थी। आज बारात जाने वाली थी पापा नहीं आए सब तयारी थी बारात मे जाने की बारात चली
गई रात हो गईं। इसबार घर के आस-पास पानी भरा था जमीन मे हरी काई चरो तरफ फैली हुई
थी अक्सर भाई के दोस्त उसमे रपट-रपट कर रास्ते बनाकर खेला करते जिसके निशान हरी काई
मे कई बन गये थे।
पहली की तरह मेढक की टर्र... मिरवा की झी... सड़क से गुजरते
तांगों की खटर-पटर अंधेरे मे तांगा आ रहा था वह घर के सामने रुका एक छाता के साथ
एक काला बैग लिए हुए पापा नीचे उतरे तांगा वाला बोला महिमान अब यही रहना मत जान
दर्जी की दुकान आपके बिना सुनी लगती हैं यह कहते हुए वह अपने घोड़े के टापूओं के
साथ आगे बढ़ चला। पापा नाले मे भरे पानी के ऊपर रखे बिजली के खंबे से घर की तरफ आए
उससे सिर्फ एक ही आदमी निकल सकता था। मम्मी ने पानी दिया पापा इस बार बीमार नहीं, खुश थे वह छाता को खूटी मे
टांग दिया खटोले मे बैठते हुए दोनों भाइयो को नया ड्रेस पहनाया जिसमे जूता जींस
टीशर्ट कैप वह भी बारात के लिए तयार होकर आए थे लेकिन रेल के देर हो जाने की वजह
से बारात मे नहीं जा पाए मम्मी के लिए साड़ी इसबार पूरा परिवार खुस था कोई बीमार
नहीं था।