जीने की चाहत
लॉकडाऊन लगा कर, जान बचा लिया तुमने।
जीते जी बाहर निकाल प्रवासियों को, मार दिया तुमने।
घर कैद कर लोगो की, जीने की चाहत बढ़ा दिया तुमने।
अपने परायों के प्यार की, औकाद दिखा दिया तुमने।
शहर में प्रवासियों को, गांव घर की याद दिला दी तुमने।
सुनी गलियों चौक चौराहों में, पुलिस के डंडे खिला दिया तुमने।
ट्रक टैंकर ऑटो साइकिल रेलवे ट्रैक में लाशें बिछा दी तुमने।
सरकारी अस्पतालों में, लाशो के ढेर लगा दिया तुमने।
हर कर्मकांड को भुलाकर शमशान घाट में जला दिया तुमने।
एक को नहीं, अनेक को अपने जाल में, समेट लिया तुमने।
दवा की खोज करने वाले वैज्ञनिकों को, उलझा दिया तुमने।
पहले मैं, पहले मैं, देश-दुनियाँ को वेक्सीन बनाने की होड़ दौड़ में लगा दिया तुमने।
वाह रे कोरोना, अच्छे अच्छो के बेरोजगार बना दिया तुमने।
पहले तो कुछ जात हुआ करती थी अछूत, अब जज़्बात भी अछूत हो रहें हैं।
तेरा नाम लेने से पहले कवारंटीन को सोच रहें हैं।
रेल , जहाज ,बस, कार, बाईक सब धरे रह गए,
पैदल ही निकल गये शहर से गांव।
सरकार से गरीब ने गुहार लगाई है।
दो वक्त के खानें के लिए लाइन लगाईं है।
मुफ्त में तेरी मार पाई है।
कमाई, जमाई , बिवाई सब से दूरी हों गई।
जो अपनों को देख, झट से लगते थे गले
वो अब देखकर साबुन से हाथ धोने लगें।
दो गज की दूरी अब जरूरी हो गई।
इतना दर्द देकर, दवा दिया तुमने।
जान थी कीमती, मुफ्त मे लिया तुमने
दवा वाले भी खुद की जान की दुआ कर रहे हैं।
तेरे छोड़ कर जाने की हर कोई दुआ कर रहा है।
दिन पुराने लौटाने के लिए जग परमात्मा से प्रार्थना कर रहा है।
जीने की चाहत लिए तुझसे रिहा होने की कामना कर रहा है।