वाद को पनपने मत दो।
गाँव मे जातिवाद, जिले में गैंगेस्टर, प्रदेश में माववादी, प्रदेश बॉर्डर में नक्सलवादी, देश बॉर्डर में आतंकवादी। इन सब से हारे तो वायरस वाद, इन सब का बाप राजनीतिवाद। यह आम जनता को न जीने देते है न मारने देते है। इन सब का झूठ का पुलिंदा बांधने वाला मीडियावाद, आजकल समाजवाद पर हॉबी है। इन सब के कारनामो से सारी वाद विवाद की जड़ बनती है, बनती रहेगी। जब तक वादी और वाद शब्द का विवाद नही खत्म नही हो जाता। आज के दौर में न जाने कितने कोरोना वाद पैदा होते रहे रहेंगे। मानव मानव से डरने लगा ज़र जोरू के पीछे गोली चलाने लगा। सरकार भी हाँफने लगी हर वाद को मिटाने में।