देश की कोहनूर है बेटियाँ, इन्हें चुराया नही जाता।
घर की शान है बेटियाँ बचाया और पढ़ाया जाता।
वक्त आने पर बेटी किसी और के लिए सजाई जाती।
एक और दुनियाँ बसाने के लिए दुल्हन बनाई जाती ।
चीख़-चित्कार के झमेलों में क्यो फसाई जाती है बेटीयाँ?
नूर और हूर होने के बावजूद क्यो छेड़ी जाती है बेटियाँ?
घर सम्पति प्रेम प्यार से क्यो नकारा जाता है बेटियों को?
जीवन जिस्म देने वाली बेटियाँ क्यो फंदों में झूलती हैं?
तितली फूलों कलियों की तरह क्यो मसली गई बेटियां?
जहाज रेल कार बॉर्डर पर रहकर बेटी चालती है गोलीयाँ।
फिर भी बेटियों का हक मारा जाता, माँ बाप की संपत्ति से।
कानून तो हक दिलाना चाहता है, क्यो नही हक मांगती है बेटियाँ?
एक ही खून से भाई बहन को मिलती है जिंदगी, ताउम्र साथ जीने की कसम खाती है बेटियाँ।
बड़ी जिंदा दिली होती है बेटियाँ जिन्हें दरिंदे भी नोंच लेते है।
कही हक, कही शक, तो कही चलते राह में मारी जाती है बेटियाँ।
बेटियों का हक न सही उसे जीने की आजादी तो दो।