कश्मीर अपना सा लगने लगा|
था देश कभी एक, भारत को टुकड़ो में बाटा गया|
करके टुकड़ो में हमें, एक बार नहीं, कई बार लूटा
गया|
ब्यापार जब से शुरू हुआ, हम लूटते ही रहे...|
अकबर धान,पान, केला, लाया, अयोध्या में मस्जिद बनवाया|
कर अमीरों से सौदा, ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत
में बन गई|
कर किसानो का दोहन, किसानो से नील की खेती कराई
गई|
मौत के सिरफिरे हम, उनकी नजरो में बनाए गए|
बिना बात के सिरफिरों को, फांसी का फंदा पहनाया
गया|
चली चाल फिर से तीमारदारो ने, पढी थी पढाई जो
विदेशों में|
कर के आन्दोलन, किसान, गरीब जनता को बरगलाया
गया|
भेज अंग्रेजो को उनके देश, जीत हमने हासिल किए|
भारत को फिर से टुकड़ो में बाटा गया, कह विरोधी
मुसलमानों को|
कर भारत का खंडन, पाकिस्तना, बांग्लादेश बनाया
गया|
एक तरफ बनते रहे एन आर आई, दूसरी तरफ आतंकवाद
पलता रहा|
करके तवाह बार्डर के बंकरो को, देश में घुसपैठ
करता रहा पाकिस्तान|
भारतीय वीर जवानों की लाशे बिछाता हुआ|
भाई चारे के नाम पर, पान सेब की पेटियाँ भेजता
रहा|
थी खामोश कांग्रेस की जुबा, यह सब चुप शांत
सहता रहा|
कई साल पुरानी बातों को सहते हुए, सब्र का बांध
टूटने लगा|
जागा जब जूनून भारत देश का, अब कश्मीर अपना सा
लगने लगा|