छीटा से मुट्टी-मुठ्ठी भर दाना जोते खेत मे फेको दाना खड़ा गिरे, तिरक्षा गिरे, पेड़ सीधा ही खड़ा होगा। यह खेत की भुरभुरी मिट्टी की ताकत। फिर यह मानव जीवन मे टेड़ा पन कहाँ से पनपता जा रहा है। सबकुछ है तो मानव की मुठ्ठी से। फिर मानव एक दूसरे को नीचा दिखाने में क्यो अड़ता जा रहा है। अपने, अपने को ही नही समझ पा रहे। जबकि दाना या बीज मुठ्ठी की छुवन को समझ रहे है।