पहले के दास आज के संत-योगी
आज के संतो व योगी मे बहुत फर्क हैं। पहले का दास राजा के अधीन होकर अपनी रचनाओं से उन्हे सब कुछ बता देते थे। इनाम पाकर अपने आप को धन्य समझते थे। आज के योगी संत, राजा बनकर भी कुछ नहीं हासिल कर पाते। भगवान को, वह अपना आईना समझते हैं, और उसमे अपना बंदरो की तरह बार-बार चेहरा देखते हैं।
पहले के दास अपने समाज की ब्यथा को बया करते थे। आज का योगी उसी समाज को दो फाक मे जीने के लिए मजबूर करता हैं। दास कलम और जुबान की चोट से दरबार मे तालियों की गूंज को अपना बना लिया करते थे। संत, योगी अब रोगी की तरह अपने ही भगवान को पाने के लिए कराह रहे हैं। बाबा तो एक रिश्ता हैं। पोती-पोतो के लिए।