एक पल का शक
जो खुशी थी मेरे पास वह भी तुमने छीन ली।
अब क्या बचा मेरे पास जो सवाल पूछती हो।
देखती थी अपना चेहरा मेरे चेहरे मे तब मै आईना था।
वक्त बे वक्त मौसम की तरह बदलने का नाम दिया।
नहीं बदला तो पत्थर दिल मान लिया जाता।
मोम भी इतनी आसानी से नहीं पिघलती, उसे भी आग पिघलाती हैं।
बाद मे यही कहते हैं कि जलने वालों ने अपने को ही खो दिया।
जलने को प्रकाश समझे या अफसाना।
मार दिया उस फनकार को जो कल तक प्रकाश के साये मे था।
पहले की एक मुस्कान काफी थी, आज की हर मुस्कान न गवारा सी गुजरती हैं।
वह लम्हे न जाने कहाँ गुम हो गए, वो शक जिंदगी को ही बदल गया।