यह मैं नही, मेरी माँ कहती है।
जब मैं पैदा हुआ दादी की गदेली भर का था।
तब परदादी ने पच्चीस पैसे में खरीद लिया था।
यह मैं नही, मेरी माँ कहती है।
बुआओं की गोंद में खेल कर उंगली पकड़ खेला था।
कुछ बड़ा हुआ दिन गुजरे ननिहाल की खेत पगडंडियों में।
यह मैं नही, मेरी माँ कहती है।
ददिहाल भी अछूता नही रहा, मुझे प्यार देने में।
उम्र के प्रथम पड़ाव में फतेहपुर से कानपुर चला गया।
यह मैं नही, मेरी माँ कहती है।
द्वतीय पड़ाव फिर कानपुर से फतेहपुर आ गया।
वक्त गुजरा लाड़ प्यार में, माँ भाई के साथ ।
यह मैं नही, मेरी माँ कहती है।
वक्त ने पासा पलटा झाँसी से दिल्ली आया, पापा के साथ वक्त कटने लगा।
भाई ने छलाँग लगाया भाई के साथ रहूंगा, वह भी वापस हो गया दर्द से भरकर।
यह मैं नही, मेरी माँ कहती है।
लड़की पढ़ी लिखी थी, डिग्रियाँ भी छह सात थी।
कर बगावत परिवार से, शादी की कार में चढ़ा दिया।
यह मैं नही, मेरी माँ कहती है।
परिवार में खुशियां ढेर थी, पोते को जन्मा लिया।
घर परिवार नाते रिश्ते सब ठीक थे, भाई भी पढ़ाने लगा।
यह मैं नही, मेरी माँ कहती है।
खुशियों के अपार सागर में माँ डूबने लगी, चोट जो उन्हें मिली, वह भी एक दौर था।
भाई भी क्या करता? उसने भी माँ की खुशी के लिए दूल्हे का जामा पहना लिया।
यह मैं नही, मेरी माँ कहती है।
थी नौकरी दूर की, माँ अकेली रह गई, अब क्या भौजाई ने कदम जो अलग कर लिया।
बुनती गुनती दुनियाँ में माँ बीमार हो गई, परिवार का उत्तार कर्ज पूरा, दादी को विदा किया।
यह मैं नही, मेरी माँ कहती है।
वह बिमारी के झोंके में, घुटनो के दर्द को झेलने लगी।
भाई ने दर्द की दवा खोज कर, माँ का इलाज कराने लगा।
यह मैं नही, मेरी माँ कहती है।
कोरोना क्या आया? फूफा को निगल लिया।
दर्द घना था, बहन की पीड़ा ने पापा को घर बुला लिया।
यह मैं नही, मेरी माँ कहती है।
सब कुछ बिखर गया, नाते रिश्ते प्यार माँ सब गमगीन हो गए।
रश्म सगाई बड्डे के बाद शादियों का माहौल जो आ गया।
यह मैं नही, मेरी माँ कहती है।
अब कौन किधर जाएगा? यह सवाल मन मे सबके घूमने लगे।
पूछता है नही कोई किसी से, समझदार सब हो गए।
यह मैं नही, मेरी माँ कहती है...