मानव काया।
दुःख दरिया की तरह, सुख ओस की तरह।
दर्द दिल सहता रहा, मन बावरे की तरह।
काया, माटी की तरह, जिव्हा स्वाद हरे।
आँख नाक कान ज्ञान, सुर-सरगम कंठ धरे।
भूखे भजन न होय, यह ब्याकुल पेट कहे।
हाथ झपट्टा मारत है, गाँठ पिड़री बोझ सहे।
पीठी बोझा ढोवत है, सीना चौड़ा होत रहे।
कर काया बर्बाद, अंत मे सुख की नींद सोवत है।
लइ जन्म जिस्म से आत्मा, दादी की गोद मे रोवत है।