बचपन कितना अच्छा था।
जब दांत हमारे कच्चे थे।
कमर करधनी, पैर पैजनिया,
चल बईयन, सरक घुटवन खड़े हो गए।
पकड़ उंगली दादा दादी की,
सैर गाँव की कर आते थे।
ले चटुवा, गाँव की दुकान से,
लार होठो से, दाड़ी तक टपकते थे।
धो मुँह माँ हमारी, काजल आँख धराती थी।
कर मीठी मीठी बातें बकरी का दूध पिलाती थी।
उतार हमारे गर्दीले कपड़ो को हलियाती।
बचपन कितना अच्छा था।
नंगे होकर भाग आँगन माँ को खूब छकाते।
थक हार माँ दो चार चपाटे लगती।
पोछ ऑसू आँखों से लिपट माँ के जाते।
बचपन कितना अच्छा था।