कैसे कटी उमरिया?
बाजार बसता नहीं उजड़ता
जा रहा हैं।
ब्यपरियों के बाजारी
आकडे सब फेल हैं।
मुसीबतों के घेरे
मे मंदी से भागती रेल हैं।
जहाँ न मिला कट वही
हाइवे जाम हैं।
चटक रोशनी ठंड भरे
कोहरे से परेशान हैं।
ओढ़ लो और गम की रज़ाई
आंखो मे नींद नहीं।
पढ़ना लिखना ब्यर्थ
सा लगने लगा,
कोतवाली थाना आग मे
जलने लगा।
किसान भी मैसम की
मार से डरने लगा।
छोड़ गरीबो का घर आलू
प्याज,
अमीरों के घर रहने लगी।
ओनियन फोन आने वाला
हैं,
हैलो...कहने वाला हैं।