एक रात की नींद
सावन के फुहारों से भींगी मिट्टी, मिट्टी की भीनी-भीनी खुशबू मे सड़क के किनारे एक लड़की, नमी व मुलायम मिट्टी में लकड़ी से आकृति उकेरने का प्रयास कर रही थी। बादल सूर्ख काले दिखतें मनो अभी बिखर पड़ेगें। यह ख़याल ही था। दोपहर की अजान गलियों में गूँज चुकी थी। सभी ज़नाब अपने सरों में रखी असंख्य छेद वाली गोल सफ़ेद टोपी जो उनके बालो को ढक, माथे में उभार ला रही थी। उनकी चहल पहल से एक माहौल खुशनुमा दिख रहा था।
इत्र की महँक पूरी गली में फ़ैल कर सभी के मन को मोह रही थी। यह माहौल जुम्मे के दिन ज्यादा ही महसूस होता है। कई बार जुम्मे की अजान के बाद गली से गुजरते जनाजों के साथ अनगिनत टोपियों से, नजरे टकराई हैं, कब्रिस्तान की तरफ जाते हुए। चहल कदमी के साथ, जनाजे के बहुत पीछे चल रहे बुजर्गो के जोड़ो को बतियाते हुए कानो ने भी सुना है, कि जीवन का सच यही है। जिसे नजर अंदाज करते हुए जीवन की ढेरो लालसा को जीने में लग जाते है। यह सब बातें कब्र तक ही याद रहती है, जैसे ही सब कब्रिस्तान से बहार आते है ।अभी आजाद होते हैं और अपने कामो में फिर से गुम हो जाते हैं। यह गुमसुदगी अगले जनाज़े में हि दिखती।
कब्र खोदता हुआ नौजवान पसीने से लथपत हो चुका था। शाम घिर आई थी सावन के बदल और काले घने होकर ठंडी हवा के साथ दस्तक दे रहे थे। बदलो का बिखरना बाकी था, हवा अपने ठंड नर्म हाथो से नौजवान के पसीनें की बूंदों को सुखा रही थी। वह थक चुका था, वह आराम करना चाहता था, वह अकेला था। वह उसी कब्र में बैठ गया। वह नींद की गोद में कब लींन हो गया? वह उसे मालूम ही नहीं चला। पंक्षी करलव करते हुए कब्रिस्तान के पेड़ों में अपना डेरा डाल रहे थे।
कुछ परिवार के साथ तो कुछ पंक्षी आपस मे आमोद प्रमोद के साथ डालियों के साथी बनकर रैन बसेरे की तरफ अग्रसर हो रहे थे। वह सब शांत हो चुके थे। बदल फटकर हवाओं में उड़ चुके थे, पश्चिम की तरफ। आसमान नीला होकर तारो से घिर चुका था, बाकी की खाली पड़ी जगह मे चाँद तारो को छूने की कोशिश कर रहा था। मस्जिद से आने वाली आख़िरी अज़ान उठ चुकी थी।
कब्र का रास्ता साँझ ढलने से पहले शांत हो चुका था। कब्र के पास वही कुदाल और फावड़ा के साथ पानी पीने वाली गेलन, सूती कपड़े का गमछा, काली कमीज अपना वजूद लिए , खोदी हुई मिट्टी से लिप्त थी। अँधेरा घना हो गया था। कब्रो में जुगनू जलबूत रहे थे।उल्लू व चमगादड़ ऊँची-ऊँची उड़ान भर रहे थे। जूगनू सब के पास जाते। हल्की रोशनी के साथ गर्मी दे आते। दूर कही कही से उड़कर आने वाले बदलो में चाँद छुप जाता तो कही खुद चलता हुआ, उनसे दूर चला जाता। अब मस्जिद की अजान की नहीं कुत्तो के रोने की आवाज आती जैसे वह भी खुदा से कुछ मांगने की चाह कर रहे हो। उनकी दो चार टोलिया उस रस्ते से गुजरी। रात के बारह बजने वाले थे।
सभी जग चुके थे, टहलने के लिए एक बच्चा दौड़ता हुआ अब्बू के पास गया। अब्बू-अब्बू देखो मामू नहीं जगे है। उनके घर के दर्जे भी खुले है। अब्बू पागल हो रिया है क्या? तेरा मामू यहाँ कहाँ आ जायेगा वह तो दुबई गए है। अरे देखो चलके उसके अब्बू बच्चे के खालू के पास जा कर बोले इसका मामू आ गया हैं। वह भी हैरानी भरी नजरों से निहारते हुए बोला पागल हो रिहा क्या? वह तो दुबई गया है। यह चर्चा सुन सभी उन्ही के पास जमा हो गए। चलो देखते हैं ऐसा कैसे हो गया? सभी एक साथ झुण्ड बना कर मामू की कब्र के पास गए वह अभी कब्र में ही सो रहे थे। सभी यह देख एक दूसरे को निहारने लगे इसका दरवाजा कैसे खुला है? वह सब उसे जगाने की कोशिश किया पर उसने उफ़ तक का न किया। सभी उसे अपनी गोदी में उठाने की कोशिश की पर वह विफल रहे।
वह उनकी गोदी में समां ही नहीं रहा था । सभी ने फूंक मार-मार कर कब्र को ढकने लगे उसकी गर्दन ही तक ढक पाये की तभी मुर्गे की बाँग सुनाई पड़ी बाँग को सुन सभी उल्टे पैर अपने घरों में चले यह कहकर कल रात देखेंगे। घिरे घना अँधेरा छट रहा था सूरज निकलने से पहले सफ़ेद उजाले में ही पंक्षी रैन बसेरे को खाली करने लगे। आसमान फिर बदलो से घिर गया। उल्लू, चमगादड़ अपनी जगह दुपक गए टिमटिमाते तारों की भांति जूगनू गायब हो गए। वह जगे तबतक उनके साथ बहुत कुछ हो चूका था। वह गर्दन तक मिट्टी से ढके थे ।
सूरज काफी लाल हो चुका था । बस्ती के लोग दिशा मैदान के लिए लोग अपने-अपने हाथों में लोटा या पानी की थामे नाले की तरफ जा रहे थे। एक आवाज चौका रही थी अरे मुझे कब्र से निकालो... यह आवाज सुन बस्ती में अफरा तफरी का माहौल बन गया। बस्ती के सभी पंडित मौलवी झाड़फूंक करने वाले, पहलवान पर किसी की हिम्मत अंदर जाने की न पड़ती बाहर से ही कब्रिस्तान में झांकते तो उन्हें वही कुदाल, गमछा, काली कमीज, पानी के गेलन की शिवा कुछ न दिखता।