कैसे समझाऊ?
देश विकाश कर रहा है, सोना आसमान छू रहा।
किसी का आँख मुँह तिरक्षा, यह सेल्फी कह रहा।
पानी जमीन का घटा, पानी चाँद की गोद मे दिख रहा।
मानव कर प्रकृति को बर्बाद, रहने चाँद में जा रहा।
दिल्ली का जाम झेला नही जाता, हैलीकॉप्टर की बात सुना रहा।
कर आयुष्मनभारत का निर्माण, मना आँख के ऑपरेशन को कर रहा।
कर बैंकों का विलय, चकमा जनता को दे रहा।
चुरा नज़र देश की जनता से, यात्रा विदेश की कर रहा।
इंसान, इंसान के खून का प्यासा हो कर, बदनाम जानवर को कर रहा।
अबके इंसान और पहले के राक्षसों में कोई फर्क नही, यह दौर भी रो-रो के सबसे कह रहा।
छोड़ दो पैसे के लालच को, यह बेटा बेटी कह रहा।
घर का बुजुर्ग बन नरकंकाल अपनी कोठी में, बेटा विदेश में कमा रहा।