कब बड़े हो
गए?
वह दिन कितने सुन्दर, जिन्हें साथ गुजारा कभी|
मिलने की चाहत हैं, मिलेंगे कही यादों भरी राह
में|
बहते देखता हैं नदी की, उठती-गिरती तरंगो में |
पूछता हूँ पता उन तरंगो से, जो आती हैं कही से|
मिलने के अरमान सजते हैं, दिल के किसे कोने में|
रखी हैं तस्वीर उनकी, बिछौने के सिरहाने में|
देखकर आह भरता हूँ, नैनों में लेकर आंसू कई|
उनकी बाते मुझे ले गई, सोच के गहरे समुन्दर में|
पूछता रहा करवटे लिए रातभर, सुबह के लिए|
वह भी थी मायूस रातभर, हालत मेरी देखकर|
कह न सकी अपनी जुबा से,वह आवाज बन कर|
हम खोए रह उसकी जुबा में कुछ तो बोलेगी|
नहीं रहे बचपन के दिन, वह कुछ हमसे पूछेगीं|