गुलामी की जंजीर
गुलामी की जंजीरों को न तोड़ पाए हैं, न तोड़ पाएंगे।
पहले धरती गुलामी की जंजीरों से जकड़ी जा रही थी।
और कोई न मिली फसल उगाने को तो नील उगाई जा रही थी।
कोई उस वक्त को समझ न पाया, कोई बन्दी बनकर , कारागार की काल कोठरी में रात गुजर कर बहन बेटियों को बन्दी बना लेते, या प्यार के जाल में फसा कर अपनी गुलाम बना लेते।
अब गुलामी का तरीका बदल गया। अब धरती नही इंसान की इंसानियत गुलाम बन गई हैं।
धरती गुलाम थी तो इंसानियत में जुनून था। अब इंसान गुलाम बन गया सोशल मीडिया में जुनून है।
है,यह भी देन अंग्रेजों की फेसबुक,वट्सएप,टिवटर इंस्टाग्राम, पब्जी,व्हेल गेम। जिसमे हमारी युवाओं की पीढ़ी अपनी आँखों की रोशनी के साथ अपने दिमाग को कुंठित करते जा रहे है ।
बात बात में खुद के साथ अपने परिवार को मिटाते जा रहे है।
अब तो आँख होते हुए, "अंधे" कान होते हुए, "बहरे" जुबान होते हुए "गूंगे"।
बस यह समझ सकते है। पहले अंग्रेज़ो के ही गुलाम थे। अब अंग्रेजी के भी गुलाम है।
इस गुलामी को बड़े गौरव के साथ स्वीकार कर अपनो को आपस मे लड़ा रहे है।
धरती गुलाम थी तब नारे अनेक थे।
भारत माता की जय।
जय जवान जय किसान।
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूँगा।
अब इंसान की इंसानियत गुलाम हैं।
अब के नारे भी है।
सोशल मीडिया की जय।
जय वाट्सएप,जय फेसबुक , जय इंस्टाग्राम, जय टिकटोक जय टिवटर।
तुम मुझे पैसा दो हम तुम्हे वन जीबी डेटा देंगे।