नब्ज़ से क्या जाने कोई?
नब्जिया वैद क्या जाने? मैं तो प्रेम का भूखा हूँ।
बचपन खेत बरियाँ में सोता,आँख आंसू से भरकर।
तकता माँ के आने का रास्ता, चौखट में सर रखकर।
नब्जिया वैद क्या जाने? मैं तो प्रेम का भूखा हूँ।
गली गाँव त्यागता फिरा, लिखने-पढ़ने के कारण।
भूख भाव पाने के लिए, मैंने दर-दर की ली शरण।
नब्जिया वैद क्या जाने? मैं तो प्रेम का भूखा हूँ।
वैद की न दवा खाने से, हर दर्द दुआ से मिटता रहा।
कहता भी क्या किसी से? दर्द खुद से सहता रहा।
नब्जिया वैद क्या जाने? मैं तो प्रेम का भूखा हूँ।
और कोई न लिखे दर्द, वह खुद से लिखे जाते।
लेकर नाम राम कृष्ण हनुमान से, दर्द दूर किए जाते।
नब्जिया वैद क्या जाने? मैं तो प्रेम का भूखा हूँ।
बिता जिंदगी जाति कुजाति में, भरम सब तोड़े जाते।
छोड़ सारे भरम को, तरह तरह के मेले जोड़े जाते।
नब्जिया वैद क्या जाने? मैं तो प्रेम का भूखा हूँ।