पान का
खोखा
पहली ही
नज़र मे दिया उसने धोखा।
हम भी न
कम थे उसीके गली मे,
रख दिया
पान का खोखा।
जब भी
निकलती वो अपनी गले से,
नजरे
लड़ाके वो, नज़रे चुराती वो।
कभी
इतराकर कभी मुस्कराकर,
हमे वो
जलाती, हमे वो जलाती।
जाती कहाँ
थी, हमे न बताती,
हम भी उसी
की यादों मे जलने लगे...
पहली ही
नज़र मे दिया उसने धोखा।
हम भी न
कम थे उसीके गली मे,
रख दिया
पान का खोखा।
लौट के
आती अपनी गले मे वो,
नज़रे न
मिलाती वो हमे न जलाती वो।
पर क्या
करे हम? हमने खाया धोखा।
थे किस्मत
के मारे हम भी रखा पान का खोखा ।
पहली ही
नज़र मे दिया हमको दोखा ...।