भविष्य की आवाज।
जुबा चुप ही सही सत्य बोलता
हैं, गरीब ही अमीरी को जानता हैं।
लम्हे कितने भी दुख भरे हो
जीवन की राह मे, चलते रहो मंजिल की तरफ।
जिसे मजदूर अपनी जरूरत समझता
हैं, अमीर उसे अपना सौक समझता हैं।
मोटा दाना खाने वाले को दिमाग
से मोटा कहते हैं,चना खाकर घोड़ा दौड़ता हैं।
मक्का भून कर खाए तो गरीब कहते
हैं, उसी मक्के को उबाल कर खाए तो छल्ली कहते हैं।
जिस जोण्डी,
बाजरा, जौव की रोटी को सीमेंट कहते थे,आज उसे ही खुदा की न्यामत
कहते हैं।
तीन कमरो के घरो को छोटा कहते
थे, आज उनही कमरो की उचाई को फ्लैट कहते हैं।
न जर का पता,
न जमीन का पता अगर गिर जाए फ्लैट तो उसे खुदा का करिश्मा कहते हैं।
अब तो न जात बड़ी हैं,
न धर्म बड़ा हैं, हर पढ़ा लिखा युवा नालेज के साथ बेरोजगार खड़ा हैं।
पहले कम ज्ञानी अनपढ़ लड़ते थे
लाठी खाते थे, आज वही लठियाँ आज का भविष्य खा रहा हैं।
दौर वह दूर नहीं जिसमे आने
वाला भविष्य चीख रहा चिल्ला रहा हैं जुबा चुप ही सही सत्य बोल रहा हैं।