कार्डो के अधीन जिंदगी
मानव जीवन जीने के लिए मेहनत करता था| अपना पेट
भरने के साथ और दो चार लोगो का पेट भर लेता था| वह अपनी पहचान के लिए कभी सरकार के
अधीन नही होता था| नेक ईमानदारी से जीने के लिए किसी प्रमाणपत्र की जरुरत नहीं थी|
जब शासन और शासक का दबदबा बना तब से मानव जीवन बदहाल होता जा रहा हैं| लोगो का
अपने हुनर और अनुभव से जीने का हक़ छीनता जा रहा हैं| चन्द कागजों के टुकड़ो का लालच देकर उनकी खुशियों में दाग लगते
हुए उनको डिप्रेसन का शिकार बनाते जा रहे हैं|
पहले लोग ज्ञान के लिए पढ़ते थे| आज सिर्फ
डिग्री के लिए पढने लगे हैं|पहले उनकी पहचान माँ-पिता से होती थी आज माँ-पिता का
भी नाम कागज के एक कालम में भर दिया जाता हैं| उन कागजो की वजह से लोग अपने
माँ-पिता को भूलते जा रहे हैं| कागज़ात जो इतने हो गए हैं| जिसमे मानव और शासक
दोनों परेशान हो रहे हैं|
जमीन की खसरा-खतौनी, मिट्टी के तेल का कार्ड,
राशन कार्ड, पहचान पत्र, पासपोर्ट, ड्राईवर लाइसेंस, असलाहा लाइसेंस, आधार कार्ड,
पैन कार्ड, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, मास्टर कार्ड, मार्कशीट, डिग्री, इतने
कागजों में उलझाने के बाद शिक्षा को इतना बढाते जा रहे है कि बेरोजगारी की तरह
शिक्षा भी बेअसर होती जा रही हैं| किसको पढ़े, किसको न पढ़े? पांचवी, आठवी, दसवी,
बाहरवी, बीटीसी,जेबीटी, बिएलेड, एलएलबी, ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन, बीएड, बीटेक,
एमटेक, बीएससी, एमएससी, बीसीए, एमसीए, बीकोम, एमकोम, बीएस डब्लू, एमएस डब्लू,एमफील,
पीएचडी, इंजीनियरिंग, इत्यादि डिप्लोमा कोर्स करने के बाद भी फार्म में सरकार
अंगूठा धराये ले रही है, पहचान के लिए| बिन
डिग्री पढ़ाई के नेता अगूंठा छाप कार्डदरकार्ड, नीतिया बना कर अपनी राजनीति से जनता
को लड़ाए जा रहे है| हुनर वालो की कदर नहीं, जिसे वह बहुत ही अच्छे ढंग से जानते
हैं| पढाई के इतने रास्तों में चलने के बावजूद भी, एक टूक सा शब्द “बेरोजगार” जो
जीवन के जीने के लिए अभिशाप बन गया|
किसानी, हुनर की कद्र नहीं अभी एक और कार्ड बनने
वाला हैं जिसमे मानव के जन्म से लेकर मरण तक का इतिहास होगा उस कार्ड में अपने पते
के साथ कब्र और शमशान का भी पता दर्ज होगा बाद में लड़ते रहना मरने के बाद कब्र और
शमशान के लिए| जीते जी, पहचान के कागजों और डिग्रीओ को संभालते रहना चिल्लाते रहना
हम बेरोजगार हैं बड़े-बड़े आंदोलनों और भूख हड़ताल के साए में|