मैट्रो
कभी आसमां के तले, कभी भूगर्भ की हमराही मैट्रो।
बड़ी सुंदर सी आवाज और चमक लिए भागती है।
बड़े बड़े राजनेताओं के वादे और स्तहार से घिर कर।
सबसे मुख़ातिब होती है, उसे सच और झूठ से फर्क नही।
कोरोना वायरस ने उसे भी तोड़ा है, चमक फीकी किया।
वह किसान आंदोलन के ऊपर से, गुजरती अपनी धुन में।
उसकी मीठी आवाज मन को भाती है, दो गज की दूरी, मुँह में मास्क, खड़े होकर सफर करना दंडनीय अपराध है।
अगला स्टेशन मुंडका है। यह गाड़ी आगे नही जाएगी।
कृपया दूसरी गाड़ी का इंतजार करो, यह यही तक है।
दरवाजे बाई तरफ खुलेंगे, उसकी ट्यून बड़ी सुंदर है।
वह दिल्ली, यूपी, हरियाणा की जुबान को रोज सुनती है।
सुबह शाम के जाम से बचाती, टाइम से घर पहुँचाती है।
हा उसे दुःख भी है, वायरस की वजह से घाटे में रहने की।
उसका स्पीड से भागना, रुकना, सबके मन को भाता है।