इंसान की जुबान से
बड़ी उलझन हैं धर्म,जातिवाद
मे, नहीं हैं उलझन इंसान मे।
हरि,
अल्लाह ने मिलकर हर वर्ग मे, नर और नार बनाया।
जिससे चलता जग संसार हैं,
कर, कर्म माया मोह कमाया।
फस इंसान जगत मे,
कर्म, माया और मोह से ज्ञान बनाया।
कर ज्ञान की परिकल्पना से,
वेद,रामायण, संविधान बनाया।
जब न चलते बना इंसान से,
कार्यपालिका न्यायपालिका बनाया।
न जाने किस शोर के चलते,
विधायिका और मीडिया बनाया।
कर संगठन इन चारों का,
सारे जहाँ मे हाहा कार मचाया।
पैरो खड़ाऊ,
कमर करधनी, सिर पर मोर मुकुट पहनाया।
कहे के खातिर मनवा तूने,
ब्रहामण क्षत्रिय वैश्य शूद्र बनाया।
है प्राकृति हमारी हरी भरी,
जिसमे नदी सागर संसार समाया।
कर भेद इस मानव ने,
हरि को जलाया-बहाया, अल्लाह को दफ़नाया