11 दिसंबर, 2019 को भारतीय संसद में CAA (नागरिक संशोधन कानून, 2019) पास किया गया, इसमें 125 मत पक्ष में रहे और 105 मत वुरुद्ध भी रहे। ये बिल पास तो हो गया और फिर इस विधेयर को 12 दिसंबर को राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई लेकिन इसके बाद देशभर में अलग-अलग जगह विरोध प्रदर्शन होने लगा। CAB, CAA और NRC लगभग-लगभग एक जैसा ही होता है बस कुछ ही अंतर के कारण इनका नाम तीन अलग-अलग तरह से लिया जाता है। NRC का फुल फॉर्म National Register of Citizens (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर), CAB का फुल फॉर्म Citizenship Amendment Bill (नागरिक संशोधन बिल) और CAA का फुल फॉर्म Citizenship Amendment Act (नागरिकता संशोधन कानून) होता है। अब चलिए बताते हैं क्या है NRC, CAB और CAA में अंतर और क्यों हो रहा है इस बिल के पास होने पर विरोध?
क्या है एनआरसी ?| What is NRC?
एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस से ये पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं है। जिस व्यक्ति का सिटिजनशिप रजिस्टर में नाम नहीं होता है तो उसे नागरिक नहीं माना जा सकता। देश में असम एक ऐसा राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू हुई है। NRC को लागू करने का मुख्य उद्देश्य ये है कि राज्य में अवैध रूप से रह रहे अप्रवासियों जैसे बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करना है। इसकी पूरी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चलती है और इस प्रक्रिया के लिए साल 1986 में सिटिजनशिप एक्ट में संशोधन करके असम के लिए खास प्रावधान किया गया। इसके तहत रजिस्टर में उन लोगों के नाम शामिल किए गए हैं जो 25 मार्च, 1971 के पहले असम के नागरिक या उनके पूर्वज राज्य में रहा करते थे। जानकारी के लिए बता दें साल 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कुछ लोग असम में पूर्वी पाकिस्तान चले गए लेकिन जमीन असम में थी और लोगों का दोनों ओर से आना जाना बंटवारे के बाद भी जारी था
इसके बाद साल 1951 में पहली बार एनआरसी के डाटा को अपडेट किया गया था। इसके बाद भी भारत में घुसपैठ लगातार होती रही। असम में साल 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भारी संख्या में शरणार्थियों का पहुंचना जारी रहा और फिर राज्य की आबादी का स्वरूप ही बदलने लगा। अमित शाह ने 20 नवंबर को सदन में बताया कि उनकी सरकार दो अलग-अलग नागरिकता संबंधित पहलुओं को लागू करने जा रही है। एक सीएए और दूसरा देश में नागरिकों की गिनती जिसे राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर या एनआरससी के नाम से जाना जाता है। नागरिकता संशोधन कानून बनाने के बाद अब मोदी सरकार को बहुत कुछ झेलना पड़ रहा लेकिन उनका दावा है कि इससे किसी भी धर्म के लोगों को कोई परेशानी नहीं होगी। साल 2005 में कांग्रेस सरकार ने एनआरसी पर काम करना शुरु किया था और साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर इस काम में तेजी आई। इसके बाद असम में नागरिकों के सत्यापन के काम शुरु हुए जिसके लिए एनआरसी केंद्र भी कोले गए। असम का नागरिक होने के लिए वहां के लोगों को डॉक्यूमेंट्स जमा करने थे। जब ये सभी प्रक्रिया पूरी हुए तो अमित शाह ने इसे संसद में पेश किया और 11 दिसंबर को एनआरसी बिल पास कर दिया गया।
क्या है नागरिक संशोधन बिल 2019?| What is Cab ?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 18 दिसंबर को बताया कि नागरिकता संशोधन मुसलमानों को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। अगर देश का विभाजन धर्म के आधार पर नहीं हुआ होता तो इस बिल को बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। इस विधेयक को लेकर देश के कुछ हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए और असम में विरोध प्रदर्शन में आगजनी व तोड़-फोड़ भी हुई। इसके बाद वहां पर 10 जिलों के इंटरनेट 24 घंटं के लिए बंद कर दिए गए थे। जो बिल संसद में पास हुआ वो नागकितता के अधिनियम 1955 में बदलाव करने के लिए है। इसके अंतर्गत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान सहित आस-पास के देशों में भारत से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी धर्म वाले लोगों को ही नागरिकता दी जाएगी। इसके लिए उन लोगों को भारत में कम से कम 6 साल बिताने होंगे, इसके पहले इसके लिए 11 साल की अवधि निर्धारित थी। इस बिल को लेकर विपक्ष दल के लोगों ने वर्तमान केंद्र सरकार को घेर लिया है और नए संशोधन बिल में मुस्लिमों को छोड़कर सभी धर्मों के लोगों को आसानी से नागरिकता देने की बात कही गई है। विपक्ष ने इसी बात का फायदा उठाया और मोदी सरकार के इस फैसले को धर्म के आधार पर वर्ग बांटने का आरोप लगाया है। जानिए कैब से जुड़ी अन्य बातें..
1. नागरिकता संशोधन बिल के अंतर्गत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता मिलेगी।
2. इस बिल के अंतर्गत कोई भी हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने के नियमों में ढील देने की बात कही गई है।
3. इन अल्पसख्यक लोगों को नागरिकता उसी सूरत में मिलेगी अगर इन तीनों देशों में किसी अल्पसंख्यकों का धार्मिक आधार पर उत्पीड़न हो रहा हो लेकिन धार्मि आधार नहीं है तो उन्हें इस नागरिकता कानून के दायरे में नहीं होगा।
4. मुस्लिम धर्म के लोगों को इस कानून की नागरिकता नहीं दी जाएगी क्योंकि इन तीनों ही देशों में मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं है। मुस्लिमों को इसमें शामिल ना करने के पीछे मोदी सरकार ने ये सोचा कि इन तीनों देशों में मुस्लिमों को कोई परेशानी नहीं है और उन्हें धर्म के कारण उत्पीड़न नहीं सहना पड़ता है।
5. इस बिल के तहत किसी अल्पसंख्यक को भारत की नागरिकता पाने के लिए कम से कम 6 सालों तक रहना होगा जबकि पुराने कानून Citizenship Act 1955 के अंतर्गत इसकी अवधि 11 साल थी।
6. नागरिकता संशोधन कानून के अंतर्गत बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 से पबले भारत आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।
क्या है नागरिक संशोधन कानून 2019? | What is CAA?
नागरिक संशोधन बिल (Citizenship Amendment Bill) पास होने के बाद नागरिक संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) बन गया। CAB यानी नागरिक संशोधन बिल के सांसद में पास होने के बाद जब राष्ट्रपति की मुहर लगी तो ये बिल बाद में कानून यानी CAA नागरिक संशोधन एक्ट बन गया। सीएए के पारित होने के साथ ही उत्तर-पूर्व, पश्चिम बंगाल और नई दिल्ली सहित पूरे देश में इसका विरोध प्रदर्शन शुरु हुआ। छात्र, नेता और इनका साथ देने वाले कुछ अन्य लोगों के ऊपर हिंसा भड़काने का आरोप है। इस संशोधन बिल आने से पहले तक भारतीय नागरिकता पाने के लिए भारत में उस शख्स को कम से कम 11 सालों तक रहना पड़ता था। नए बिल में इसकी सीमा को घटाकर 6 साल कर दिया गया है। विरोध करने में ज्यादातर लोगों का मानना है या तो इस बिल में मुस्लिम को शामिल करें नहीं तो सरकार इस बिल को वापस लेकर कानून को खत्म कर दे।
नागरिक संशोधन बिल बनाम नेशनल रजिस्टर सिटिजन (CAB vs NRC)
नागरिक संशोधन बिल के सामने आने के बाद से हर किसी में अपनी अपनी बातें रखने के कारण बहस हो रही है। कुछ लोगों का कहना है कि एनआरसी का उल्टा है तो ममता बनर्जी जैसे लोगों का कहना है कि इसे लाया ही इसलिए गया है जिससे एनआरसी को लागू करना आसान हो जाए। ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं अब सवाल ये है कि आखिर दोनों में अंतर क्या है जिसके ऊपर बवाल मचाया गया है। नागरिकता संशोधन कानून में एक विदेशी नागरिक को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है, लेकिन एनआसरी में उन लोगों की पहचान करना है जो भारत के नागरिक नहीं है लेकिन यहां रह रहे हैं। सीएबी के अंतर्गत 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आए हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी लोगों को नागरिकता देने के नियमों में ढील दी गई है, जबकि एनआरसी के अंतर्गत 25 मार्च, 1971 से पहले भारत में हो रहे लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान बताया गया है।
भले ही लोग नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं लेकिन असल में वे विरोध एनआरसी का कर रहे हैं। प्रदर्शन करने वाले लोगों का कहना है कि नागरिक संशोधन कानून में मुस्लिमों को शामिल क्यों नहीं किया गया? उनका ये भी आरोप है कि ये सरकार मुस्लिमों की नागरिकता छीनना चाहती है और ऐसा भी कहा जा रहा है कि मोदी सरकार एनआरसी से बाहर हुए हिंदुओं और दूसरे धर्मों के लोगों को नागरिकता संशोधन कानून के अंतर्गत देगी जबकि मुस्लिमों को बाहर निकाल दिया जाएगा।