देश की राजधानी में इन दिनों जो कुछ भी चल रहा है उससे हर कोई वाकिफ है। मगर ये बेफिजुली के झगड़े से आपको क्या लगता है कि इन छात्रों का उपद्रव पूरी तरह से सही है? किसी भी झगड़े में एक पक्ष पूरी तरह से सही नहीं हो सकता है और ऐसा ही जामिया में होने वाले विवाद में भी हो रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि रविवार को दिल्ली में नागरिकता संशोधन एक्ट लागू हुआ है और इसके खिलाफ इन छात्रों का ये प्रदर्शन है। सोशल मीडिया पर इस समय पत्रकार लोग दो भागों में बंट गया है, जिसमें एक उन छात्रों का विरोध कर रहे हैं तो दूसरा दिल्ली पुलिस का साथ दे रहे हैं। मगर इनमें सच्चाई क्या है ये किसी न्यूज चैनल ने नहीं दिखाया, क्योंकि हर जगह यही दिखाया जा रहा है कि दिल्ली पुलिस मासूम छात्रों पर अत्याचार कर रहे हैं।
क्या है जामिया विवाद?
जामिया के छात्र रविवार को नए नागरिकता कानून के खिलाफ जाकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इसी दौरान ऐसी खबरें आईं कि तीन बसों में आग लगाई गई और ये वाक्या वाकई हिंसक थी। इस खबर को लेकर जामिया मिल्लिया की वीसी प्रोफेसर नजमा अख्तर ने कहा कि पुलिस बिना अनुमति के यूनिवर्सिटी कैंपस में घुसकर छात्रों पर लाठियां और आंसू गैस बरसाने लगी। पुलिस की कार्यवाही में कई छात्र जख्मी हुए और कई घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया। मगर यहां सवाल आता है कि क्या दिल्ली पुलिस पागल हो गई है जो वे छात्रों पर बेवजह लाठियां बरसाए। हम सभी पढ़े-लिखे समाज से हैं तो हमें ये तो जरूर सोचना चाहिए कि आखिर पुलिस ऐसा क्यों कर रही, वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने भी छात्रों के ऐसे उपद्रव के बारे में नाराजगी जताई है। इस मामले में तत्काल सनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए अदालत में आने का आदेश दिया है। भारत के नये मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े ने कहा, 'बस इसलिए कि वो छात्र हैं, इसका मतलब ये नहीं कि वो कानून-व्यवस्था अपने हाथ में लें। इस बात का फैसला तभी होगा जब वे स्थिति शांत बनाएंगे, पहले दंगे बंद होने चाहिए।' सुप्रीम कोर्ट ने जामिया में हुई हिंसा पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हिंसा बंद होनी चाहिए. शीर्ष अदालत ने कहा है कि वो इस बारे में दायर याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई की जाएगी।
रविवार को बेकाबू हुए हालात
रविवार को छात्रों ने जामिया मिलिया इस्लामिया के बाहर प्रदर्शन किया गया और नारेबाजी भी की गई लेकिन पुलिस के साथ उनका संघर्ष ज्यादा हुआ। पहले पत्थरबाजी फिर प्रदर्शनकारियों ने बसों-बाइकों में आग लगा दी। इसकी वजह से माहौल कुछ ज्यादा ही बिगड़ गया और दिल्ली पुलिस ने अपने बयान में बताया कि क्योंकि छात्रों की तरफ से पत्थरबाजी की गई थी और इसी वजह से उन्हें लाठीचार्ज करना पड़ा। बसों को जलाने के ऊपर ये खबर आई कि बसों में आग पुलिस ने लगाई जबकि एक बस ही जलाई गई और एनडीटीवी के एक संवादाता से बात करते हुए ये बात सामने आई कि जिस बस में आग लगाई गई उसमें पुलिस नहीं बल्कि आम जनता बैठी थी जो काफी हैरान और परेशान थी। वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें
हमने जो वीडियो यहां अपलोड किया है उसमें आप साफ देख सकेंगे कि पुलिस किस तरह से हिंसक महिलाओं से दूर जा रही जबकि छात्रों ने छात्राओं को आगे करके ऐसा किया जिससे पुलिस उनपर लाठीचार्ज नहीं कर पाए। ऐसा ही हुआ लेकिन सोशल मीडिया पर लोग इसे भी तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं लेकिन सवाल ये भी है कि कॉलेज कैंपस में हुए विवाद को बीच सड़क पर उतारने की जरूरत क्या थी। इसके अलावा इन छात्रों का दो ही नारा है 'गो बैक दिल्ली पुलिस' और 'बीजेपी के दलालों को जूता मारो सालों को'। इन छात्रों को इस नये बिल से इतनी परेशानी क्यों है। इन सभी सवालों का जवाब समय के साथ हम सबको मिलेगा। हालांकि ज्यादातर लोगों को कहना है ऐसा मुस्लिम समुदाय के लोग ज्यादा कर रहे हैं जिससे इस आड़ में वे अपने इस्लाम की रोटियां सेक सकें। ये बात हम नहीं कह रहे बल्कि नीचे दी ये तस्वीर बताती है-
ये तस्वीर जामिया मिलिया के पास एक मेट्रो स्टेशन की है जिसमें आप देख सकते हैं कि किसी ने बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है, 'इस्लाम रहेगा'। क्या मतलब है इनके पढ़ने और लिखने का जब इन्हें सही और गलत में कोई फर्क ही नहीं मालूम है। इस बिल से धार्मिक यातनाएं सहने वाले हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई या फिर दूसके सभी धर्मों को भारत की नागरिकता प्राप्त करने का बिल पास किया गया है। इससे भला छात्रों को किस बात का खतरा है? खैर जो भी है अब सुप्रीम कोर्ट इसपर सुनवाई 17 दिसंबर यानी मंगलवार को करेगा।