हाथों की सिलवटे
शर्दी से कापते हाथ। दियासलाई को थामे हुए। दियासलाई से सीका निकाल कर, उसमे रगड़ते हुए एक हल्की लौ के साथ कागज में आग लगा दी। इस कागज में छपे शब्द जलने लगे।अब उसे बिना छूए पढ़ सकते थे। ऐसी ठंड में कौन पढ़े? हाथ की हथेलियों को रगड़ते हुए पिंकी अपने सलवार की मोहरी को पैरो की पिडुरी तक चढ़ाते हुए फिर नीचे कर लिए। आग लगने से पहले धुएं के ऊपर जाने की रफ्तार तेज थी।
वह धुआं उनके घर की छत की तरफ चढ़ता गया। धुएं की हाइट काम हुई कागज राख हो चुके थे। लकड़ी ने आग पकड़ ली। लकड़ी की लौ लाल और पीली जल रही थी। अम्मा दियासलाई को अपने पेटिकोट के नेफे में छुपाते हुए शरीर में पड़े ऊनी शाल को, वह गले में फसाते हुए बाए कंधे में रख लिया। आवाज दी तुलसी पीढ़ा लाना। पैर भर आए है। उनकी बोली राजस्थानी टोन में थी। लकड़ी का पीढ़ा थमाते हुए पिंकी उठ खड़ी हुई। दूसरी तरफ आने के लिए उनकी आंखों में धुआं लग रहा था। लपट शुकून दे रही थी, वही धुआं कष्ट दे रहा था। उसे भी जगह चाहिए किसी को छेड़ने के लिए।
अम्मा ओ अम्मा इन तोते का क्या करू? अरे उन्हे भी यही आग के पास ले आ। वह पिंजड़ा उठाकर अम्मा के बगल में रख दिया।
अम्मा के हाथो की सिकुड़ी चमड़ी में पड़े लाल कड़े चमक रहे थे। हाथो की सिकुड़ी खाल उनके उम्र को चिन्हित कर दिया था कि उनकी उम्र 65 के आसपास होगी। चेहरे में चमक थी आग की, गाल की खाल लटक आई थी गर्दन की तरफ।
वह सामने वाले कमरे की तरफ जल रही आग की तरफ इशारा किया आग न जलाए तो क्या जलाए? आज तो सूर्य भगवान ने अपनी लीला ही नहीं दिखाई। मैंने आज चार दिन में नहाया है। ठंड न लगे इसकी वजह से अपने लोहे के चूल्हे में ही आग जलाया है। शरीर को शेकने के बाद इस लोहे के चूल्हे को अपनी चारपाई के नीचे रख लूंगी तो मेरी बूढ़ी कमर भी गर्म हो जायेगी। कलेजे को भी ठंडी नहीं लगेगी।और ठंडी वाली रात भी कट जायेगी। इसी के सहारे दो रोटी भी खा लूंगी। रात भी आराम से कट जायेगी। तोते अपने पिंजड़े में उछल कूद मचा रहे थे। चूल्हे में आग दहक रही थी। उसके आसपास हाथ सेकने वाले की संख्या बढ़ रही थी। जो भी आता एक लाइन बोलता, अम्मा ने अच्छे से आग को जला रखा है। यह कहते हुए अपने पैरो को मोड़ते हुए हाथ की कोहनी को रगड़ते हुए आग के पास बैठने की जगह बना लेती। हथेलियों को फैलाते हुए आग की लपट में सेक रही थी।