शब्द जलते नही।
हाड़ कपाती ठंड, कोहरे की चादर ओढ़े प्रकृति, कंबल में लिपटा बुढ़ापा, टोपे से कान छिपाता बचपन, पतले साल में लिपटी महिला, मोटी जैकेट पहने पुरुष, सिगरेट से खींचा गया धुआं युवा के लबों को सुखाता हुआ। गली में बंधी बकरी पुरानी स्वेटर अपने आगे वाले पैर डाले हुए। अध फटे कंबल में लिपटी बछिया, अनाज से खाली जूट में बैठा भूरा कुत्ता। अपने सर को अपने कदमों में झुकाए हुए।
सामने से गुजरती सड़क उसके किनारे एक दुकान, उस दुकान में सजी हुई समाने, जिसमे हर आने- जाने वाले ग्राहक की नजर और आवाज़, एक गोल्डफ्लैक, कैप्टन, कमांडर, सुंदरी, बालक,श्याम बीड़ी, लालबिहारी, तम्बाकू देना। शिखर, तलब, विमला, कमला गुटखा देना। गांजा भरने वाला खाली रैपर देने ये आवाजे ठंड की वजह से दबी जुबान में निकलती।
सामने डिस्पेंसरी से फेमस जगह जहां अब शिक्षित सम्मानित स्कूल के टीचर जो आजकल अपनी जींस की पेंट की पिछली जेब में अपनी हथेलियों को गर्म करते हुए स्कूल से दूर सिगरेट के कस मारने चले आते। गली के समझदार बुजुर्ग बीड़ी फूकने, गली, चौक चौराहे की ख़ाक छानते लौंडे लफाड़े रंगीन संतरा, माधुरी की बोतल की सील तोड़ते इधर ही आते एक कोने में।
दूसरा कोना एम सी डी अधिकारी और कर्मचारियों का अड्डा बन गया है। उसी तरफ उनकी रेड़ी, झाड़ू, बेलचा, कुदाल, फावड़ा, लंबा बास जिसमे गाठ मारी गई बोरी अक्सर उस जगह की शोभा में विराजमान रहती। एम सीडी के बाबूजी और कर्मचारी आजकल अकौड़ा जलाए बैठे दिखते। वह ठंड की सुबह के पहले मालिक जो गली नाली सड़क चौक चौबारे की सफाई के लिए पहले दस्तक देते कालोनी में। घर से आने में उनके हाथ, होठ, माथा, शरीर सब ठंडे हो जाते।
वह अपनी साइकिल मोटरसाइकिल से ठंड में आते। जो उन्हें पूरी तरह कपा देती। वह कपकपी ठंड में उनका साथ चाय और यह अकौडा ही देता। इस जगह से गर्म होकर हाजरी दर्ज करके काम में निकलते। सुबह के नौ बजने को है, आग जल रही है। लकड़ी सुलग रही थी। न्यूज़ पेपर और 2023 के कलेंडर में दर्ज दिन महीना और तारीख विवाह मूहर्त, राशि जब जल चुके थे। आग इन्ही से लगाई लगाई थी। उनके नही जले है, उनमें दर्ज शब्द जो अपने वजूद को दर्ज कराते हुए राख के ढेर में जमा हो गए थे। जिन्हे अभी आंख, बिना चश्मे के पढ़ पा रही थी। सब कुछ जल चुका था। रख के ढेर में शब्द पढ़े जा रहे थे। एम सी डी के बाबू जी आज के ताजे अखबार को पढ़ रहे थे। और कर्मचारी चाय की चुस्की लेते हुए उनकी हर बात पर जवाब हाजिर कर रहे थे। वह काम से फारिक होकर शब्द और आग के पास तन मन से बैठे थे। शब्द जलते नही आग में उनका आवरण जल जाता है।