न भटको अपने नेक इरादों से ।
माला जपू श्याम की, राम की, धनश्याम की, जग मे फैला हैं उजियारा तेरे ही नाम का। जप-जप कर जीता हैं जग सारा।
बनता हैं तूही सहारा जग के बेसहारों का, माला जपू श्याम की राम की घनश्याम की।
रहने दे अमन शांति इस जहां मे जहाँ खेलता हैं बचपन गाती हैं जवानी गुनगुनाता हैं बुढ़ापा।
करती हैं श्र्ंगर इस जहाँ की औरते, मानती हैं उस स्वर्ग को जिसे जानती नहीं। वह भी जपती हैं माला श्याम की राम की घनश्याम की वह भी जीना चाहती हैं इस सुखमय संसार मे।
मत फैलावों मतभेद के धागे जो कभी जुड़े नहीं। धागे वही मजबूत और अच्छे जिससे माला बनी श्याम की राम की घनश्याम की।
वाद-विवाद तो खुद को मिटाने की जड़ हैं। समझ लो अभी भी इस बात को अब माला जप लो इंसानियत के नाम की, न भूलों इनके नेक इरादों को युद्ध मे तो बेजुबान पशु पंक्षी भी मारे जाते हैं। सूख जाते हैं बारूदो की धमक से नन्हें कोमल पौधे, नदियाँ भी भटक जाती हैं अपने रास्ते।
माला जपू श्याम की राम की घनश्याम की।