न खिड़कियों से झांको, न कुंडीयां खड़काओ।
है कामयाबी का हुस्न जहन में, कलम पकड़ लो।
तोड़ दो उन बंदिशों को, तुम्हें गुमराह करती हों।
रच डालो, कोरे कागज़ो को, नीली दवातों से।
अधीन सत्ता के गुलामों को, दीमक बने बैठे है।
खा गए, भारत वाली सोने की चिड़ियां को।
न खिड़कियों से झांको, न कुंडीयां खड़काओ।
सुना दो उनके कानों को, बेरोजगारी बढ़ गई।
हर युवा की चीख, खुद से सबक लेने लगी।
उठो जागो छीन लो अपने हक, वह मारे बैठे है।
मत भटकों तृष्णा हिरण की तरह, रेत गर्म है।
भुन जाओगे गर्म रेत से, काले चने की तरह।
न खिड़कियों से झांको, न कुंडीयां खड़काओ।
गलियां पतली हो गई, सड़क बन गई हाइवे।
शिक्षा बन गई धंधा, टोल टैक्स का फंडा।
पूरी दुनियां ज्वलनशील, विकास पड़ गया ठंडा।
न खिड़कियों से झांको, न कुंडीयां खड़काओ।