ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, वर्ष में दो बार जब सूर्य, गुरु की राशि धनु व मीन में होता है, उस समय को खरमास या (मलमास / पुरुषोत्तम मास) कहते हैं। ज्ञातव्य है कि इस
दौरान कोई भी शुभ मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। इस बार खरमास का
प्रारंभ 14 मार्च, सोमवार यानि आज से शुरू हो रहा है, जो 13 अप्रैल, बुधवार को समाप्त होगा। धर्म ग्रंथों में खरमास से संबंधित अनेक नियम बताए गए
हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
1. इस महीने में गेहूं, चावल, सफेद धान, मूंग, जौ, तिल, मटर, बथुआ, शहतूत, सामक, ककड़ी, केला, घी, कटहल, आम, हर्रे, पीपल, जीरा, सौंठ, इमली, सुपारी, आंवला, सेंधा नमक इत्यादि के सेवन से बचा जाना चाहिए|
2. इसके अतिरिक्त मांस, शहद, चावल का मांड, चौलाई, उरद, प्याज, लहसुन, नागरमोथा, छत्री, गाजर, मूली, राई, नशे की चीजें, दाल, तिल का तेल और दूषित अन्न के त्याग हेतु भी कोशिश करना चाहिए।
3. तांबे के बर्तन में गाय का दूध, चमड़े में रखा हुआ पानी और केवल अपने लिए ही पकाया हुआ अन्न भी दूषित माना गया
है। इसलिए इनका भी त्याग करना चाहिए।
4. पुरुषोत्तम मास में जमीन पर सोना, पत्तल पर भोजन करना, शाम को एक वक्त खाना और धर्मभ्रष्ट संस्कारहीन लोगों से संपर्क की भी मनाही
है|
5. किसी प्राणी से द्रोह नहीं करना चाहिए। देवता, वेद, ब्राह्मण, गुरु, गाय, साधु-सन्यांसी, स्त्री और बड़े लोगों
की निंदा नहीं करनी चाहिए।
6. मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए| हालाँकि पूजा-पाठ किया जा सकता है
क्यों कहते हैं खरमास को पुरुषोत्तम मास?
हिंदू धर्मशास्त्रों में खरमास को अत्यंत पूजनीय बताया गया है। खरमास को
पुरुषोत्तम मास क्यों कहा जाता है इसके संबंध में हमारे शास्त्रों में एक कथा का
वर्णन है जो इस तरह है- प्राचीन काल में जब सर्वप्रथम खरमास की उत्पत्ति हुई तो वह
स्वामीरहित मलमास देव-पितर आदि की पूजा तथा मंगल कार्यों के लिए वर्जित माना गया।
इसी कारण सभी ओर उसकी निंदा होने लगी। निंदा से दु:खी होकर मलमास भगवान विष्णु के
पास बैकुण्ठ लोक में पहुंचा और अपनी पीड़ा बताई। तब भगवान विष्णु मलमास को लेकर
गोलोक गए। वहां भगवान श्रीकृष्ण मोरपंख का मुकुट व वैजयंती माला धारण कर स्वर्णजड़ित
आसन पर बैठे थे। भगवान विष्णु ने मलमास को श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक करवाया
व कहा कि यह मलमास वेद-शास्त्र के अनुसार पुण्य कर्मों के लिए अयोग्य माना गया है
इसीलिए सभी इसकी निंदा करते हैं। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि अब से कोई भी मलमास की
निंदा नहीं करेगा क्योंकि अब से मैं इसे अपना नाम देता हूं। यह जगत में पुरुषोत्तम
मास के नाम से विख्यात होगा। मैं इस मास का स्वामी बन गया हूं। जिस परमधाम गोलोक
को पाने के लिए ऋषि तपस्या करते हैं वही दुर्लभ पद पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान व दान करने
वाले को सरलता से प्राप्त हो जाएंगे। इस प्रकार मलमास पुरुषोत्तम मास के नाम से
प्रसिद्ध हो गया|