यदि आप गधे को संसार का सबसे मूर्ख प्राणी मानते हैं, तो ठहरिए और एक बार
फिर से सोचिए. आख़िर, गधे की भी अपनी इमेज होती है. गधों के लिए काम करने वाली दिल्ली की संस्था 'डॉन्की सेंकच्युरी' इसी मानसिकता को बदलने
की दिशा में काम कर रही है. यह गधों के अधिकारों के लिए काम करने वाली दक्षिण
पूर्व एशिया की इकलौती संस्था है. उसका कहना है कि गधे की चिंता करना ज़रूरी है. डॉन्की
सेंकच्युरी के डॉ. सुरजीत नाथ बताते हैं, "पढ़े-लिखे या शहरी लोग गधे को हल्के में लेते हैं, लेकिन जिनकी
रोज़ी-रोटी इनसे चलती है वो गधे को लक्ष्मी मानते हैं." गधों और उनके मालिक के साथ कई सालों
से काम कर रहे डॉ. नाथ इसका ख्याल रखते हैं कि गधों की हालत और सेहत ठीक रहे. वह
कहते हैं कि आज भी जहाँ मशीनें काम नहीं आतीं, वहां गधे ही काम आते
हैं. डॉ. नाथ का कहना है कि 'मेक इन इंडिया' में गधों की महत्वपूर्ण भूमिका है. आज भी कई इलाक़ों जैसे राजस्थान में गधा
गाड़ी है. वहां गधे के अलावा कोई नहीं जा सकता. 'डॉंकी सेंकच्युरी' के दिल्ली प्रमुख
विनोद खुराना बताते हैं कि हर पांच साल में गधों की गणना की जाती है. पिछली बार 2012 में इनकी गणना हुई
थी. तब यह बात सामने आई कि अब भारत में इनकी संख्या कम होती जा रही है. डॉ. नाथ का
कहना है कि भारत के कुछ राज्यों, जैसे गुजरात और राजस्थान में गधों की हालत अच्छी है लेकिन बिहार, उत्तर प्रदेश और
दिल्ली के आसपास के इलाक़ों में इनकी हालत ख़राब है. डॉ. नाथ जब अपना परिचय एक
डॉन्की स्पेशलिस्ट के रूप में देते हैं तो लोग उनका मज़ाक उड़ाते हैं लेकिन बाद
में शर्मिंदगी महसूस करते हैं. पर गाँव के लोग ऐसा नहीं करते. वे अपने जानवर को
गंभीरता से लेते हैं. डॉ. नाथ के साथ कई बार ऐसा हुआ है कि जब लोग उनकी गाड़ी पर
डॉन्की सेंकच्युरी लिखा देखते हैं तो हँस देते हैं. कई बार डॉ. नाथ उनके पीछे जाकर
अपना ब्रोशर देते हैं. वह लोगों को बताते हैं कि गधा एक बुद्धिमान पशु है. उसे
रास्तों की पहचान है और वह रोज़ का अपना टार्गेट ज़रूर पूरा करता है. दिल्ली से
सटे गुड़गांव में रेशमा की रोज़ी-रोटी गधों से चलती है. इसीलिए वो इनका ख्याल
बच्चों की तरह रखती हैं...लेखिका : इंदु पांडेय, दिल्ली से, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम
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