ज्ञातव्य है कि हॉलीवुड मूवी 'द जंगल बुक' भारत में 100 करोड़ रुपए के क्लब
में शामिल हो चुकी है। मूवी रूडयार्ड किपलिंग की वर्ल्ड फेमस बुक पर बेस्ड है।
इसमें जंगल में रहने वाले बच्चे की कहानी है, जो जीने के लिए संघर्ष
करता है और जानवर उसकी मदद करते हैं। हालांकि, ये स्टोरी फिक्शन है।
लेकिन इतिहास में कुछ ऐसे लोग भी हुए हैं, जो जानवरों के साथ ही पले-बढ़े
हैं। आइये जानें ऐसे ही कुछ लोगों के बारे में जिन्हें कुछ सालों तक जानवरों ने
पाला-पोसा:
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वोल्फ गर्ल्स, भारत:
1920 में भारत के मिदनापुर में आठ साल की अमला और 18 महीने की कमला
भेड़ियों की मांद में मिली थीं। इन्हें 'वोल्फ गर्ल्स' कहा जाता था। इन दोनों की खोज जल सिंह नाम के एक शख्स ने की थी जो पास के
इलाके में मिशनरी चलाता था। कुछ गांव वालों ने रिपोर्ट की थी कि जंगल में भेड़ियों
के साथ भूत रहते हैं। जल सिंह इस बात का पता लगाने के लिए मांद में पहुंचा। उसने
देखा कि पांच भेड़ियों के साथ दो लड़कियां भी हैं। उनकी बॉडी पर कपड़े नहीं थे और वे
गंदगी से भरी हुई थीं। इसके अलावा खरोंच के निशान थे। दोनों को अनाथालय भेज दिया
गया। बताया जाता है कि दोनों लड़कियां चल नहीं पाती थीं। वे जानवरों की तरह दोनों
पैर और हाथ का इस्तेमाल करती थीं। वो इतना तेज भागती थी कि उन्हें पकड़ना बेहद
मुश्किल था। कुछ बोल नहीं सकती थी। खुद को अंधेरे में रखती थीं। रात में भी देख सकती थीं। अमला
की एक साल बाद मौत हो गई थी। वहीं, कमला नौ साल तक जिंदा रही। हालांकि उसने थोड़ा-थोड़ा खड़ा होना सीख लिया था।
- टार्जन, युगांडा:
जॉन सेबुन्या को रियल लाइफ टार्जन
कहा जाता था। 1988 में जॉन के पिता ने उसकी मां का मर्डर कर दिया। इसके बाद जॉन डर से युगांडा
के जंगलों में भाग गया। यहां रहने वाले वेरवेट बंदरों के एक झुंड ने उसे भुखमरी से
बचाया। बंदर उसे खाने में स्वीट पोटैटो, रूट्स और नट्स देते थे। जॉन ने जंगलों में झाड़ियों के नीचे रहना, पेड़ों पर चढ़ना और बंदरों
की तरह खाना ढूंढना सीखा। 1991 में एक आदिवासी महिला खाने की तलाश में निकली तो उसने जॉन को देखा। ट्राइबल्स
जॉन के चलने के स्टायल और उसकी कंडिशन देखकर चौंक गए थे। उन्होंने उसे इंसानों की
तरह रहना सिखाया। बाद में मॉली और पॉल नाम के एक कपल ने एडॉप्ट कर लिया था। 1999 में उसके सब्जेक्ट पर
एक डॉक्युमेंट्री भी बनाई गई।
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डॉग ब्वॉय, रूस:
शराबी मां-बाप के कारण 1996 में सिर्फ चार की
उम्र में इवान मिशूकोव अपने मॉस्को स्थित घर से भाग गया। उसने सड़कों पर रहना शुरू
किया। वहां कुत्तों से दोस्ती की। वह कुत्तों के साथ झुंड में रहता और घूम-घूमकर
खाना मांगता था। लोग उस पर तरस खाकर खाना भी दे देते थे। इवान पर अगर कोई हमला
करने की कोशिश करता तो कुत्ते मिलकर उस पर अटैक कर देते थे। करीब दो साल तक इवान
उनके साथ सड़क पर रहा। बाद में पुलिस ने उसे चिल्ड्रन होम में डाल दिया। इवान
स्कूल जाने लगा और आज वह रशियन आर्मी का मेंबर है।
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मंकी वुमन, ब्रिटेन:
मरीना चेपमैन को चार साल की उम्र
में किडनैप करके कोलंबिया के जंगलों में फेंक दिया गया था। वह बीते पांच साल तक कापूचिन
बंदरों के साथ रही थीं। बंदरों ने मरीना को अपने साथ रखा। उसे खाना ढूंढना और अपना
बचाव करना सिखाया। दोनों पैर और हाथों पर चलना और पेड़ के बीच बने होल में सोना
उनकी आदत बन गई थी। मरीना ने बताया कि उनका बंदर से रिश्ता एक घटना के बाद और भी
ज्यादा पक्का हो गया। एक बार उन्हें फूड पॉइजनिंग हो गई थी। तब एक बुजुर्ग बंदर
उसके लिए कीचड़ वाला पानी लेकर आया। पानी पीते ही मरीना को उल्टी आ गई और उसकी
हालात में सुधार होने लगा। मरीना पूरी तरह से ह्यूमन लैंग्वेज भूल चुकी थी। बाद
में शिकारियों ने उसे बचाया था| फिलहाल वह ब्रिटेन के ब्रेडफोर्ड में रह रही हैं।
उन्हें अपनी फैमिली के बारे में अब कुछ भी याद नहीं। 2014 में वह वापस जंगल
पहुंची और बंदरों के बिहेवियर पर एक डॉक्युमेंट्री भी बनाई।
- चिकन ब्वॉय, फिजी:
फिजी के सुजीत कुमार को उसकी
फैमिली ने छह साल की उम्र में मुर्गियों के दड़बे में डाल दिया था। बताया जाता है
कि सुजीत मुर्गियों की तरह चलता था। वैसे ही चोंच मारकर खाना भी खाता था और शोर
मचाता था। आठ साल इसी तरह रहने के बाद 2002 में रोटरी क्लब
प्रेसिडेंट ऐलिजाबेथ क्लायटॉन की नजर सुजीत पर पड़ी और उसे आजाद कराया। आज सुजीत
उनके प्राइवेट अनाथालय में रहता है। वॉलिंटियर्स की टीम उसे खाना,पीना और चलना सिखाते हैं।
(साभार : भास्कर.कॉम)